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________________ गुणपदार्थवादः ३८५ ननु महद्दीर्घत्वयोस्त्र्यणुकादिषु प्रवर्त्तमानयोदयणुके चाणुत्वह्रस्वत्वयोः को विशेषः ? 'महत्सु दीर्घमानीयतां दीर्धेषु महदानीयताम्' इति व्यवहारभेदप्रतीतेरस्त्यनयोः परस्परतो भेदः । अणुत्वह्रस्वत्वयोस्तु विशेषो योगिनां तदशिनां प्रत्यक्ष एव । महदादि च परिमाणं रूपादिभ्योऽर्थान्तरं तत्प्रत्ययविलक्षणबुद्धि ग्राह्यत्वात्सुखादिवत् । संयुक्तमपि द्रव्यं यद्वशात् 'अत्रेदं पृथक्' इत्यपोध्रियते तदपोद्धारव्यवहारकारणं पृथक्त्वं घटादिभ्योऽर्थान्तरं तत्प्रत्यय विलक्षणज्ञान ग्राह्यस्वारसुखादिवत् । और बेर प्रांवला, बिल्व इत्यादि महत् परिमाण वाले पदार्थों में जो अणु परिमाण की प्रतीति होती है वह उपचरित है, उसमें प्रकर्षभाव की अपेक्षा अर्थात् आपस में छोटे बड़े की कल्पना लेकर अणुपने का व्यवहार किया जाता है । ____ शंका-त्र्यणुक आदि में प्रवर्तमान महत् और दीर्घत्व तथा द्वयणुक में प्रवर्तमान अणुत्व और ह्रस्वत्व इनमें क्या विशेष भेद है ? __समाधान-महत् और दोघं में यह विशेषता है कि महान पदार्थों में से दीर्घ को लाना, दीर्घ पदार्थों में से महान को लाना [अर्थात् बड़े में से जो लम्बा हो उसको लाना या लंबाई वाले में जो बड़ा हो उसे लाना] इसप्रकार का भेद व्यवहार देखा जाता है अतः इनमें परस्पर में भेद है । अणु परिमाण और ह्रस्व परिमाण इनकी परस्पर की विशेषता तो उन परिमाणों को देखने वाले योगियों के प्रत्यक्ष ही है। यह महत्, दीर्घ, आदि परिमाण नामा गुण रूप रस आदि गुणों से पृथक् है, क्योंकि उन गुणों से विलक्षण ही प्रतिभास कराने वाला है [ अर्थात् विलक्षण बुद्धि द्वारा ग्राह्य होता है ] जैसे सुख, दुःखादि का प्रतिभास विलक्षण होने से रूपादि गुण से सुखादि गुण पृथक् माने जाते हैं । पृथक्त्व गुण का लक्षण-संयुक्त हुअा द्रव्य भी जिसके निमित्त से “यहां पर यह पृथक् है" इसप्रकार पृथक् किया जाता है वह पृथक्पने के व्यवहार का कारणभूत पृथक्त्वनामा गुण कहलाता है, यह गुण घट आदि पदार्थों से अर्थांतरभूत है क्योंकि घट के प्रत्यय से विलक्षण प्रत्यय द्वारा ग्राह्य होता है जैसे सुखादि गुणों का प्रतिभास विलक्षण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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