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प्रमेयकमलमार्तण्डे ननु चात्मनः सर्वगतत्वात्तत्रास्त्यमूर्त त्वमसर्वगतद्रव्यपरिमाणसम्बन्धाभावलक्षणं न घटादौ विपर्ययात् । ननु चास्य कुतः सर्वगतत्वं सिद्धम्-साधनान्तरात्, अत एव वा ? साधनान्तराच्चेत् ; तदेव (तत एव) समीहितसिद्ध : 'द्रव्यत्वे सत्यमूर्तत्वात्' इत्यस्य वैयर्थ्यम् । अत एव चेदन्योन्याश्रयःसिद्धे हि तस्य सर्वगतत्वेऽसर्वगतद्रव्या (व्य) परिमाणसम्बन्धरूपमूर्तत्वाभावोऽमत्त त्वं सिध्यति, प्रतश्च तत्सर्वगतत्वमिति ।
किञ्च 'अमूर्तत्वात्' इति किमयं प्रसज्यप्रतिषेधो मृतत्वाभावमात्रममूर्त त्वम्, पर्युदासो वा मूर्त स्वादन्यद्भावान्तरमिति ? तत्राद्यविकल्पोऽयुक्तः; तुच्छाभावस्य प्राक्प्रबन्धेन प्रतिषेधात् । सतोपि
असर्वगत नहीं मानना यह असंभव है। कोई कहे कि घट पट आदि को सर्वगत कैसे माने ? वे तो साक्षात् असर्वगत दिखाई देते हैं, तो आत्मा के पक्ष में यही बात है,
आत्मा भी साक्षात् असर्वगत प्रतीत हो रहा है उसको किसप्रकार सर्वगत माना जाय ? अर्थात् नहीं माना जा सकता।
वैशेषिक--आत्मा के सर्वगतपना है अतः उसमें असर्वगत द्रव्य परिमाण सम्बन्ध का प्रभाव होना रूप अमूर्तत्व सिद्ध होता है किंतु घट आदि में ऐसा अमूर्त्तत्व सिद्ध नहीं होता, क्योंकि घटादि असर्वगत है ?
जैन-यात्मा के सर्वगतपना किस हेतु से सिद्ध होगा, अन्य हेतु से या इसी (अमर्त्तत्व) हेतु से १ अन्य हेतु से प्रात्मा का सर्वगतत्व सिद्ध होता है ऐसा कहो तो उसीसे हमारा समीहित सिद्ध होगा, अर्थात् हम पहले ही कह रहे हैं कि "द्रव्यत्वे सति अमूर्तत्वात्" हेतु व्यर्थ है, उससे आत्मा का सर्वगतपना सिद्ध नहीं होता। इसी अमतत्व हेतु से आत्मा का सर्वगतपना सिद्ध करते हैं, ऐसा कहो तो अन्योन्याश्रय दोष होगा-जब आत्मा के सर्वगतपना सिद्ध होवे तब उसके असर्वगत द्रव्य परिमाणरूप मतका अभाव अमूर्तपना सिद्ध होवेगा, और जब वह सिद्ध होगा तब उसके द्वारा आत्मा का सर्वगतपना सिद्ध होगा इसतरह दोनों ही प्रसिद्ध कहलायेंगे ।
तथा “अमूतत्वात्" इस हेतु पद में नकारात्मक नत्र समास में अभाव अर्थ है वह अभाव कौनसा है, मूतत्व का प्रभाव मात्र अमूर्तत्व है ऐसा प्रसज्यप्रतिषेध है, या कि मृतका भावांतर अमूर्त है ऐसा पर्युदास प्रतिषेध है ? प्रथम प्रभाव अयुक्त है, तुच्छ अभाव का निराकरण पहले ही कर आये हैं [ दूसरे भाग में ] यदि इस अभाव
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