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विषय
शब्द, हमारे प्रत्यक्ष होता है अतः आकाश का गुण नहीं है
२६२ प्रत्येक शब्द का पुद्गलरूप उपादान कारण भिन्न है
२६५ आकाश को सिद्ध करने वाला अवगाहना गुण है
३०. प्राकाश द्रव्य विचार का सारांश
३०४.३०५ १० काल द्रव्यवाद :
३०६ से ३२० परापर प्रत्यय से काल द्रव्य की सिद्धि करना तब शक्य है जब उसे अनेक द्रव्यरूप माना जाय
३०८ काल द्रव्य को एक रूप मानने पर युगपत् प्रत्यय होना असंभव है मीमांसक कालद्रव्य को नहीं मानते लोक व्यवहार से भी काल द्रव्य की सिद्धि सहज है-पाटल पुष्प वसंत काल में खिलता है, शरदकाल में सप्तच्छद खिलता है इत्यादि
३१७ योग के काल द्रव्य के खंडन का सारांश
३२० ११ दिग्द्रव्यवाद :
३२१ से ३२६ वैशेषिक द्वारा दिशा को पृथक् द्रव्य रूप सिद्ध करने का प्रयास
३२१-३२२ प्राकाश प्रदेशों की पंक्ति में ही दिशा की कल्पना हुअा करती है १२ आत्म द्रव्यवाद :
३२७ से ३८२ वैशेषिक प्रात्मा को सर्वव्यापक मानते हैं किन्तु वह प्रमाण बाधित है
३२८ प्रात्मा क्रियाशील है अतः व्यापक नहीं
३२६ देवदत्त के स्त्री, धनादि देवदत्त के प्रात्मा के अदृष्ट गुण का कार्य नहीं है, क्योंकि प्रात्मा
चेतन है और अदृष्ट अचेतन अदृष्ट अपने प्राश्रय भूत प्रात्मा में संयुक्त रहकर प्राश्रयांतर में क्रिया को प्रारम्भ करता है, क्योंकि एक द्रव्य रूप होकर क्रिया का हेतु है
३४० देवदत्त के प्रति जो मणि मुक्तादि प्राकर्षित होते हैं उसमें वैशेषिक ने पदृष्ट को कारण माना
है वह कौन सा अदृष्ट है, देवदत्त के शरीरस्थ प्रास्मा में होनेवाला या अन्यत्र होने वाला?
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