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________________ ( २६ ) विषय स्कंध के विघटन पूर्वक परमाणु हुए हैं अतः अनित्य हैं नित्य परमाणु द्रव्य खंडन का सारांश ८ अवयवी स्वरूप विचार : अवयवों से भिन्न अवयवी उपलब्ध नहीं होता कुछ अवयवों के प्रतीत होने पर श्रवयवी प्रतीत होता है या संपूर्ण अवयवों के प्रतीत होने पर ? निरंश एक स्वभाव वाला द्रव्य एक साथ अनेकों के प्राश्रित नहीं रहता तन्तु अवयवों में पर प्रवयवी समवाय से रहना प्रसिद्ध है नित्य परमाणु ही प्रसिद्ध हैं तो उनके कार्य स्वरूप पृथ्वी आदि श्रवयवी किस प्रकार सिद्ध होगा ? पृथ्वी, जलादिकी जाति सर्वथा भिन्न मानना प्रसिद्ध है श्रवयवी स्वरूप के खंडन का सारांश & श्राकाश द्रव्य विचार : वैशेषिक का पूर्वपक्ष - शब्द गुण स्वरूप है शब्द का जो श्राश्रय है वह आकाश है शब्द काल श्रादि द्रव्य रूप नहीं है जैन द्वारा प्रकाश के विषय में किया गया वैशेषिक का मंतव्य खंडित करना शब्द स्पर्शगुण के श्राश्रयभूत है अतः द्रव्य है शब्द में अल्प तथा महान परिमाण रहता है अतः द्रव्य स्वरूप है शब्द श्राकाश का गुण होता तो हमारे प्रत्यक्ष नहीं होता योगीजन शब्द को चक्षु आदि इन्द्रिय द्वारा प्रत्यक्ष कर सकते हैं। Jain Education International शब्द क्रियाशील होने से द्रध्य है। वीचि तरंग न्याय से शब्द की उत्पत्ति माने तो प्रथम बार उत्पन्न हुन शब्द एक रूप है या अनेक रूप ? For Private & Personal Use Only पृष्ठ २२७ २२६ २३० से २५४ २३० २३२ २३६ २४४ २५० २५१ २५३-२५४ २५५ से ३०५ २५६ २५८ २६० २६१ २६२ २६४ २७० २८५ २८८ २६१ www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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