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________________ ( २८ ) विषय ३७६ देवदत्त के पास पशु प्रादि पाते हैं इस वाक्य में देवदत्त शब्द से कौन सा अर्थ लेना परवादी को इष्ट है ? ३५२ प्रात्मा के गुण सर्वत्र उपलब्ध होते हैं, इस वाक्य का क्या अर्थ करोगे ? ३५६ मात्मा सक्रिय होने से कथंचित् अनित्य है ३५६ प्रदृष्ट की प्रेरणा से मन अहित परिहार करके स्वर्गादि गमनरूप संसार करता है, ऐसा कहना प्रयुक्त है अमूर्त होने मात्र से आत्मा सर्वगत सिद्ध नहीं हो सकता ३६५ सावयवपना पृथक् अवयवों से ही प्रारम्भ हो ऐसा नियम नहीं ३७५ वैशेषिक की नाशोत्पाद की प्रक्रिया भी विचित्र है मात्मा को सावयव मानने पर भी उसके छेद का प्रसंग नहीं पाता ३७७ प्रात्म द्रव्यवाद विचार का सारांश ३८१-३८२ १३ गुणपदार्थवाद : ३८३ से ४१६ वैशेषिक के मान्य २४ गुण ३८३-३८७ गुणों की चौबीस संख्या एवं उनका स्वरूप गलत है संख्या नाम का गुण मानना हास्यास्पद है पृथक्त्व नामा गुण घटित नहीं होता संयोग विभाग ये भी गुण रूप नहीं हैं ४०१ वैशेषिक के अभिमत सुखदुःखादि गुण भी सिद्ध नहीं ४०६ स्नेह गुण को केवल जल में मानना प्रयुक्त है संस्कार गुण के तीन भेद ४१४ वैशेषिक अभिमत गुण पदार्थ के खंडन का सारांश ४१८-४१६ १४ कर्मपदार्थवाद : ४२० से ४२५ कर्म अर्थात् क्रिया के केवल पांद भेद नहीं हैं ४२१ कर्मपदार्थ विचार का सारांश ४२५ ३८८ ४०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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