________________
老老老老老老老老老老老老老老老老老老老老老老老老忠忠
अवयविस्वरूपविचारः
तन्त्वाद्यवयवेभ्यो भिन्नस्य च पटाद्यवयविद्रव्यस्योपलब्धिलक्षणप्राप्तस्यानुपलम्भेनासत्वात् । न चास्योपलब्धिलक्षणप्राप्तत्वमसिद्धम् ; "महत्यनेकद्रव्यत्वाद्रूपविशेषाच्च रूपोपलब्धिः'' [ वैशे० सू० ४।१।६ ] इत्यभ्युपगमात् । न च समानदेशत्वादवयविनोऽवयवेभ्यो भेदेनानुपलब्धिः; वातातपादिभी
वैशेषिक के नित्य परमाणुवाद का निरसन कर अब जैनाचार्य अवयवी द्रव्य के विषय में वैशेषिक के विपरीत मान्यता का खण्डन करते हैं-वैशेषिक तन्तु आदि अवयवों से पट आदि अवयवी को सर्वथा पृथक मानते हैं किन्तु उनसे भिन्न अवयवी उपलब्ध होने योग्य होकर भी उपलब्ध नहीं होता है अतः ऐसे लक्षण वाले अवयवी का असत्व हो ठहरता है। अवयवी पटादि द्रव्य उपलब्धि होने योग्य नहीं हो सो तो बात है नहीं, "महत्यनेक द्रव्यत्वाद् रूप विशेषात् च रूपोपलब्धिः" अर्थात् जो महान् अनेक द्रव्यरूप हो, तथा जिसमें रूप विशेष हो, उसमें रूप की उपलब्धि होती है । ऐसा आपके यहां कहा है । अवयव और अवयवी के समान देश होते हैं अतः इनमें भेद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org