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________________ नित्य परमाणु द्रव्य खंडन का सारांश योग के यहां परमाणुओं को नित्य माना है उनका कहना है कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इनके परमाणु नित्य हैं अर्थात् जिनसे ये पृथ्वी आदि स्कन्ध रूप कार्य बना है वे नित्य हैं हां जब पृथ्वी आदि स्कन्ध बिखेरकर वापिस अणु बनते हैं वे तो अनित्य हैं। प्राचार्य का कहना है कि सर्वथा अण नित्य है तो उसके द्वारा स्कन्धादि अवयवी की उत्पत्ति हो नहीं सकती नित्य एक में अर्थ क्रिया नहीं बनती, यदि वे परमाणु कार्य को करते हैं तो एक बार में ही सब कार्य कर डालेंगे या तो बिल्कुल करेंगे ही नहीं, क्योंकि इनमें स्वभाव परिवर्तन तो होता नहीं यदि होता है तो वे परमाणु अनित्य बन जायेंगे जो योग को इष्ट नहीं । आपका कहना है कि कारण तीन तरह के होते हैं समवायी कारण, असमवायी कारण, निमित्त कारण तीनों का संयोग सतत् नहीं मिलता अतः परमाणु सतत् कार्य को नहीं कर पाते हैं इत्यादि वह भी कथन गलत है। परमाणु का संयोग यदि अनित्य है तो वह भी किस कारण से होगा ? इत्यादि अनेक प्रश्न होते हैं, यह संयोग गुण है और गुण किसी ना किसी के प्राश्रय में रहता है अतः वह परमाणु में रहेगा तो परमाणु भी अनित्य बन जायेंगे, तथा परमाणु के साथ जब दूसरे परमाणु मिलते हैं तब एकदेश से मिलते हैं या सर्वदेश से ? सर्व देश से मिलेंगे तो सब मिलकर अणुमात्र हो जायेंगे और एक देश से कहो तो परमाणु को सांश मानना पड़ेगा, इन सब दोषों को दूर करने के लिये परमाणु द्रव्य को अनित्य मानना चाहिए, वे परमाणु स्कन्ध के भेद पूर्वक ही उत्पन्न होते हैं कहा भी है "भेदादणुः" ॥ सारांश समाप्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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