SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ प्रमेयकमलमार्तण्डे प्रतीत्या स्कन्धभेदपूर्वकत्व सिद्ध: । बलवत्पुरुषप्रेरित मुद्गराद्यभिघातादवयवक्रियोत्पत्तेः अवयवविभागात्संयोगविनाशाद्विनाशोर्थानाम्' इत्यादि विनाशोत्पादप्रक्रियोद्धोषणं तु प्रागेव कृतोत्तरम् । ततो नित्यैकत्वस्वभावाणूनां जनकत्वासम्भवात्तदारब्धं तु द्वयणुकाद्यवयविद्रव्यमनित्यमित्यप्ययुक्तमुक्तम् । ॥परमाणुरूपनित्यद्रव्यविचारः समाप्तः ।। जैन-यह बात भी ठीक नहीं, तन्तुओं का उदाहरण दिया सो जो तन्तु पट बनने के पहले के हैं वे भी प्रवेणीरूप स्कन्ध का भेद करके उत्पन्न हुए हैं, अतः "स्कन्ध भेद पूर्वकत्वात्" हेतु अबाधित ही हैं, आप वैशेषिक पदार्थ के उत्पाद और विनाश के विषय में कथन करते हैं कि बलवान पुरुष द्वारा प्रेरित मुद्गर आदि के चोट से अवयवों में क्रिया उत्पन्न होती है, उससे अवयवों का विभाग [ विभाजन ] होता है, उससे संयोग का नाश होता है और घट रूप अवयवी नष्ट होता है इत्यादि नाशोत्पाद की प्रक्रिया बकवास मात्र है, और इसका खण्डन पहले हो भी चुका है, अत: निश्चित होता है कि नित्य एक स्वभाव वाले परमाणु माने तो कार्यों का जनकपना होना असंभव है, जब परमाणु ही सिद्ध नहीं होते तो उन परमाणुओं से प्रारब्ध द्वयणुक आदि अवयवी द्रव्य का अनित्यपना भी कैसे सिद्ध हो ? नहीं हो सकता, इस तरह परमाणुरूप कारणद्रव्य और अवयवीरूप कार्य द्रव्य दोनों के विषय में वैशेषिक का सिद्धांत बाधित हो जाता है। इस प्रकार परमाणु सर्वथा नित्य एक स्वभाववाले हैं, उनकी पृथिवी आदि की जातियां सर्वथा पृथक् पृथक् हैं इत्यादि कहना असत् ठहरता है। ॥ परमाणुरूपनित्यद्रव्यविचार समाप्त ।। CIEY ASEAN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy