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________________ ************ 483526867 परमाणरूपनित्यद्रव्यविचारः ननु समवाय्यऽसमवायिनिमित्तभेदात्त्रिविधं कारणम् । यत्र हि कार्य समवैति तत्समवायिकारणम्, यथा द्वयणुकस्याणुद्वयम् । यच्च कार्यकार्थसमवेतं कार्यकारणकार्थसमवेतं वा कार्यमुत्पादयति वैशेषिक मत में द्रव्य, गुण आदि छह पदार्थ होते हैं वे ही प्रमाण द्वारा जानने योग्य हुआ करते हैं, इत्यादि कहा गया है वह अयुक्त है, क्योंकि इन द्रव्यादि छह पदार्थों के बारे में विचार करे तो वे सिद्ध नहीं पाते हैं, अब इसी का खुलासा करते हैं-पृथिवी, जल, अग्नि और वायु को पथक् पृथक् चार द्रव्य मानकर इनमें नित्य और अनित्य ऐसे दो दो भेद किये जाते हैं वह अयुक्त है, जो पदार्थ सर्वथा नित्य होता है उसमें क्रमशः या युगपत् अर्थ क्रिया नहीं हो सकती है, जब अर्थ क्रिया नहीं होगी तो उसका सत्व भी नहीं रहेगा, क्योंकि अर्थ क्रिया युक्त होना सत्व का लक्षण है, और सत्वकी व्यावृत्ति होने से असत्व प्रसंग आता है, अर्थात् एकान्त नित्य पदार्थ का असत्व अभाव ही ठहरता है । वैशेषिक पृथिवी आदि के कारणभूत परमाणुओं को सर्वथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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