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प्रमेयकमलमार्तण्डे
होता है इससे विपरीत नित्य एक धर्म रूप वस्तु को मानने पर अनेक दोष आते हैं। उदाहरण के लिए देखिये आत्मा यदि एक धर्म वाला ही है तो उसमें कर्तृत्व-भोक्तृत्व जीवत्व, हिंसकत्व आदि स्वरूप कैसे प्रतीत होते ? अतः प्रत्येक वस्तु सामान्य विशेषात्मक ही है न कि एक सामान्य या विशेष रूप । प्रभाव भी ऐसे सामान्यविशेष वाले पदार्थ को जानता है विषय करता है ।
"सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः"
॥ सारांश समाप्त ॥
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