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प्रमेयकमलमार्तण्डे विरोधो यत्र च भेदस्तत्राभेदस्य शीतोष्णस्पर्शवत्' इति विरोधः। तथा-'अभेदस्यैकत्वस्वभावस्यान्यदधिकरणं भेदस्य चानेकस्वभावस्यान्यत्' इति वैयधिकरण्यम् । तथा 'एकान्तेनैकात्मकत्वे यो दोषोऽनेकस्वभावत्वाभावलक्षणोऽनेकात्मकत्वे चैकस्वभावत्वाभावलक्षण: सोत्राप्यनुषज्यते' इत्युभयदोषः । तथा 'यन स्वभावेनार्थस्यैकस्वभावता तेनानेकस्वभावत्वस्यापि प्रसङ्गः, येन चानेकस्वभावता तेनैकस्वभावत्वस्यापि' इति सङ्करप्रसङ्गः । “सर्वेषां युगपत्प्राप्ति: संकरः' [ ] इत्यभिधानात् । तथा 'येन स्वभावेनानेकत्वं तेनैकत्वं प्राप्नोति येन चैकत्वं तेनानेकत्वम्' इति व्यतिकरः। "परस्परविषयगमनं व्यतिकरः' [ ] इति प्रसिद्धः। तथा 'येन रूपेण भेदस्तेन कथञ्चिद्भेदो येन चाभेदस्तेनापि कथञ्चिदभेदः' इत्यनवस्था। अतोऽप्रतिपत्तितोऽभावस्तत्त्वस्यानुषज्येतानेकान्तवादिनाम् । एवं सत्त्वाद्यनेकान्ताभ्युपगमेप्येतेष्टौ दोषा द्रष्टव्याः । तन्न तदात्मार्थः प्रमाणप्रमेयः । तथा जहां अभेद है वहीं भेद का विरोध है और जहां भेद है वहां अभेद के रहने में विरोध है जैसे कि शीत और उष्ण का विरोध है। अभेद तो एक स्वभावी होने से अन्य अधिकरण भूत है और भेद अनेक स्वभावी होने से अन्य अधिकरण वाला है यह वैयधिकरण्य दोष है । तथा पट आदि वस्तु को सर्वथा एकात्मक मानते हैं तो अनेक स्वभाव का अभाव होना रूप दोष पाता है और सर्वथा अनेकात्मक माने तो एक स्वभाव का अभाव होना रूप दोष आता है, इसतरह उभयदोष आता है ( यह दोष वैयधिकरण्य नामा दोष में अन्तर्निहित है ) जिस स्वभाव से एक स्वभावपना है उस स्वभाव से अनेक स्वभावपने का भी प्रसङ्ग आता है एवं जिस स्वभाव से अनेक स्वभावपना है उस स्वभाव से एक स्वभावपना भी हो सकने से संकर नामा दूषण आता है, “सर्वेषां युगपत् प्राप्तिः संकरः" ऐसा संकर दोष का लक्षण है, जिस स्वभाव से अनेकत्व है उससे एकत्व प्राप्त होता है और जिससे एकत्व है उससे अनेकत्व प्राप्त है अतः व्यतिकर दोष उपस्थित होता है, “परस्परविषयगमनं व्यतिकरः" ऐसा व्यतिकर दोष का लक्षण है। तथा जिस रूप से भेद है उससे कथंचित भेद है और जिस रूप से अभेद है उससे कथंचित अभेद है सो यह अनवस्था नामा दोष पाया। इसतरह वस्तु के स्वरूप की अप्रतिपत्ति होने से उसका अंत में जाकर अभाव ही हो जाता है, इसप्रकार अनेकान्तवादी जैन के यहां माने हुए तत्व में संशयादि पाठों दूषण आते हैं। इसीतरह वस्तु को कथंचित सत् और कथंचित असत् रूप मानने में ये ही पाठ दोष आते हैं, अतः सामान्य विशेषात्मक पदार्थ प्रमाण द्वारा ग्राह्य नहीं होता है।
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