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अर्थस्य सामान्यविशेषात्मकत्ववाद:
१८६ किन्तु परस्परतोत्यन्तविभिन्ना द्रव्यगुणकर्मसामान्य विशेषसमवायाख्याः षडेव पदार्थाः । तत्र पृथिव्यप्तेजो वाय्वाकाशकाल दिगात्ममनांसि नवैव द्रव्याणि । पृथिव्यप्तेजोवायुरित्येतच्चतुःसंख्यं द्रव्यं नित्यानित्यविकल्पाविभेदम् । तत्र परमाणुरूपं नित्यं सदकारणवत्त्वात् । तदारब्धं तु द्वयणुकादि कार्यद्रव्यमनित्यम् । प्राकाशादिकं तु नित्यमेवानुत्पत्तिमत्त्वात् एषां च द्रव्यत्वाभिसम्बन्धाद्दव्य रूपता।
___ एतच्चेतरव्यवच्छेदकमेषां लक्षणम् ; तथाहि-पृथिव्यादीनिमन:पर्यन्तानीत रेभ्यो भिद्यन्ते, 'द्रव्याणि' इति व्यवहर्त्तव्यानि, द्रव्यत्वाभिसम्बन्धात्, यानि नैवं न तानि द्रव्यत्वाभिसम्बन्धवन्ति यथा गुणादीनीति । पृथिव्यादीनामप्यवान्त रभेदवतां पृथिवीत्वाद्यभिसम्बन्धो लक्षणम् इतरेभ्यो भेदे
हम नैयायिक वैशेषिक के यहां वस्तु तत्व की एक विभिन्न ही व्यवस्था है, प्रत्येक पदार्थ परस्पर में अत्यन्त विभिन्न है, उस पदार्थ के द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामा छह भेद हैं अर्थात् छह हो पदार्थ प्रमाण ग्राह्य हैं। इन छह पदार्थों में से द्रव्य नामा पदार्थ नौ भेद को लिये हुए हैं-पृथिवी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन । इन नौ में भी जो पृथिवी, जल, अग्नि और वायु हैं वे चारों द्रव्य नित्य और अनित्य के भेद से दो प्रकार के हैं, परमाणु नामा द्रव्य तो नित्य, सत् और अकारणत्व रूप है अर्थात् इन पृथिवी आदि चारों द्रव्यों के चार प्रकार के जो परमाणु हैं वे सदा नित्य सत् एवं अकारण हुप्रा करते हैं तथा परमाणुओं से बना जो द्वयणुक, त्रिअणुक आदि कार्य है वह अनित्य है। इन पृथिवी आदि चारों को छोड़कर शेष पांच आकाशादि द्रव्य सर्वथा नित्य ही हैं अर्थात् ये दो प्रकार के नहीं हैं, एक नित्य स्वभावो ही हैं, क्योंकि ये अनुत्पत्तिमान हैं, इन सब द्रव्यों में द्रव्यत्व के संबंध से द्रव्यपना हुआ करता है। इन पृथिवी आदि नौ द्रव्यों का अन्य पदार्थों से व्यवच्छेद करनेवाला लक्षण इसप्रकार का है-पृथिवी अादि से लेकर मन तक सभी द्रव्य इतर पदार्थों से भेद को प्राप्त हैं, इनको द्रव्य नाम से पुकारते हैं, क्योंकि इनमें द्रव्यत्व का सम्बन्ध है, जिनकी द्रव्य संज्ञा नहीं हैं वे द्रव्यत्व सम्बन्ध वाले नहीं हैं, जैसे गुण, कर्म इत्यादि । पृथिवी ग्रादि द्रव्यों में होनेवाले जो अवान्तर भेद हैं उनमें पृथिवीत्व आदि का सम्बन्ध रूप लक्षण मौजद रहता है अतः इनका परस्पर में भेद व्यवहार बन जाता है, तथा इन द्रव्यों का पृथिवी, जल आदि नाम भी पृथक्-पृथक् होने से उस-उस शब्द द्वारा वाच्य होकर पृथक्पना सिद्ध होता है, अर्थात् पृथिवी नामा द्रव्य इतर जल आदि से भिन्न है अथवा पृथिवी इस नाम से
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