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प्रमेयकमलमार्तण्डे परिणामेपि अनयोरभेदो न स्यात् । न च तच्छक्तिभेदे तदात्मनो ज्ञानस्यापि भेदः; अन्यथैकस्य स्वपरग्राहकत्वं न स्यात् । नापि चित्रज्ञानस्य नोलाद्यनेकाकारतया परिणामेपि एकाकारताव्याघातः । तद्वत्सुखाद्यनेकाकारतया परिणामेपि प्रात्मनो नैकत्वव्याघातो विशेषाभावात् । न चैकत्र युगपत्, अन्यत्र तु कालभेदेन परिणामाद्विशेषः; प्रतीतेनियामकत्वात् । यत्र हि प्रतीतिर्देशकालभिन्न तदभिन्न वा वस्तुन्येकत्वं प्रतिपद्यते तत्रैकत्वं प्रतिपत्तव्यम्, यत्र तु नानात्वं प्रतिपद्यते तत्र तु नानात्वमिति ।
ततो यदुक्तम्-सर्वात्मनेवाभेदे भेदस्तद्विपरीत : कथं भवेत् ? न ह्य कदा विधिप्रतिषेधौ परस्परविरुद्धौ युक्तौ। प्रयोगः-यत्राभेदस्तत्र तद्विपरीतो न भेदः यथा तेषामेव पर्यायाणां द्रव्यस्य च
का प्रसंग आयेगा। प्रात्मा यदि उन पर्यायोंरूप परिणमन नहीं करता तो जिस रूप से उसके सुख परिणाम होता है उसी रूप से दुःख परिणाम होने पर भी इनमें अभेद नहीं होता। परिणमन की शक्तियों में भेद स्वीकार करने पर तयुक्त ज्ञान में भी भेद हो जायगा ऐसा नियम नहीं है यदि ऐसा होता तो एक ज्ञान स्व और पर दोनों का ग्राहक नहीं कहलाता । जैसे चित्र ज्ञान में नील आदि अनेक आकारपने से परिणमित हो जाने पर भी उसके एकाकारता में कोई बाधा नहीं आती, वैसे सुख-दुःख आदि अनेक आकारपने से परिणत होने पर भी प्रात्मा में एकपने का कोई विरोध नहीं पाता । चित्रज्ञान और आत्मा इनमें अनेकाकार होकर भी एकरूप बने रहने की समानता है कोई विशेषता नहीं है । कहने का अभिप्राय यह है कि बौद्ध चित्रज्ञान को जैसे अनेकाकार होकर एक रूप मानते हैं, वैसे हम जैन सुख प्रादि अनेक परिणाम स्वरूप होते हुए भी आत्मा को एक रूप मानते हैं । बौद्ध कहे कि चित्र ज्ञान में एक साथ अनेक आकार होते हैं किन्तु प्रात्मा में ऐसे युगपत् सुख-दुःख आदि परिणाम नहीं होते अतः कालभेद होने से चित्र ज्ञान और आत्मा में समानता नहीं हो सकती सो ऐसी बात नहीं है, यहां तो प्रतीति ही नियामक है, अर्थात् जहां पर देश और काल भेद से भिन्न वस्तु में या देश और काल के अभेद से अभिन्न वस्तु में प्रतीति द्वारा एकत्व प्राप्त होता है वहां पर एकत्व मानना चाहिए और जहां पर प्रतीति द्वारा नानापना प्राप्त होता है वहां पर नानापना मानना चाहिए।
बौद्ध-द्रव्य और उसकी पर्याय या परिणाम इनमें सर्वात्मना अभेद है तो उसका विपक्षी जो भेद है वह कैसे सम्भव है क्योंकि एक काल में परस्पर विरुद्ध
कालमापद व तो
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