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अन्वय्यात्मसिद्धिः
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ननु चात्मासुखादिपर्यायः सम्बद्धयमानः परित्यक्तपूर्वरूपो वा सम्बद्धयेत, अपरित्यक्तपूर्वरूपो वा ? प्रथमपक्षे निरन्वयनाशप्रसङ्गः, अवस्थातुः कस्यचिदभावात् । द्वितीयपक्षे तु पूर्वोत्तरावस्थयोरात्मनोऽविशेषादपरिणामित्वानुषङ्गः। प्रयोगः यत्पूर्वोत्तरावस्थासु न विशिष्यते न तत्परिणामि यथाकाशम्, न विशिष्यते पूर्वोत्तरावस्थास्वात्मेति , तदपरीक्षिताभिधानम् ; प्रात्मनो भेदेन प्रसिद्धसत्ताकैः सुखादिपर्यायैः स्वस्य सम्बन्धानभ्युपगमात् । प्रात्मैव हि तत्पर्यायतया परिणमते नीलाद्याकारतया चित्रज्ञानवत्, स्वपरग्रहणशक्तिद्वयात्मकतयक विज्ञानवद्वा । न खलु ययैव शक्त्यात्मानं प्रतिपद्यते विज्ञानं तयैवार्थम्, तयोरभेदप्रसङ्गात् । अन्यथात्मनो येन रूपेण सुखपरिणामस्तेनैव दुःख
बौद्ध-अभी जैन ने पर्याय विशेष का लक्षण करते हुए कहा कि एक द्रव्य में क्रम से होने वाले परिणमनों को पर्याय विशेष कहते हैं, जैसे आत्मा में क्रमशः हर्ष और विषाद हुआ करते हैं, उसमें हमारा प्रश्न है कि सुखादि पर्यायों के साथ आत्मा क्रम से सम्बन्ध करता है वह पूर्व रूप को छोड़कर करता है या बिना छोड़े ही, यदि छोड़कर करता है तब निरन्वय विनाश का प्रसंग आयेगा, क्योंकि अवस्थित रहनेवाला कोई पदार्थ नहीं और यदि पूर्वरूप को बिना छोड़े उन पर्यायों से सम्बद्ध होता है तो पूर्वोत्तर अवस्थाओं में प्रात्मा में कुछ विशेषपना नहीं रहने से वह अपरिणामी कहलायेगा। अनुमान से यही बात सिद्ध होती है कि आत्मा परिणामी नहीं है, क्योंकि वह पूर्वोत्तर अवस्थाओं में एकसा रहता है, जो पूर्वोत्तर अवस्थाओं में विशिष्ट न होकर एकसा रहता है वह परिणामी नहीं माना जाता, जैसे आकाश हमेशा एकसा रहने से परिणामी नहीं है, अात्मा भी आकाश के समान पूर्वोत्तर अवस्थाओं में ( सुखादि पर्यायों में ) एकसा है अतः अपरिणामी है ?
__ जैन-यह बौद्ध का कथन असत् है, आत्मा से कथंचित् भिन्न ऐसी सर्वजन प्रसिद्ध जो सुख-दुःख आदि पर्यायें हैं उनका अपना कोई सम्बन्ध नहीं है ( उन सुखदुःख का परस्पर में संबंध नहीं होता ) अब इसी को बतलाते हैं-प्रात्मा स्वयं एक परिणमनशील पदार्थ है, वही सुख प्रादि पर्यायरूप परिणमन करता है, जैसे बौद्ध के यहां नील, पीत आदि प्राकार रूप एक चित्र ज्ञान परिणमन करता है, अथवा स्व और पर दोनों को जानने की दो शक्तियोंरूप एक विज्ञान हुआ करता है वैसे ही आत्मद्रव्य है। जिस शक्ति से ज्ञान अपने को जान रहा है उसी शक्ति से पदार्थ को नहीं जानता। यदि एक शक्ति से दोनों को जानेगा तो उन दोनों में स्व-पर में अभेद
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