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________________ १७६ प्रमेयकमलमार्तण्डे मानोतीतो वा कल्प्येत, वर्तमानो वा, उभौ वा, सन्तानो वा प्रकारान्तरासभ्भवात् ? तत्राद्य विकल्पे 'ज्ञातवान्' इत्ययमेवाकारावसायो युज्यते पूर्वं तेन ज्ञातत्वात्, 'सम्प्रति जानामि' इत्येतत्त न युक्तम्, न ह्यसावतीतो ज्ञानक्षणो वर्तमानकाले वेत्ति पूर्वमेवास्य निरुद्धत्वात् । द्वितीयपक्षे तु 'सम्प्रति जानामि' इत्येतद्युक्त तस्येदानीं वेदकत्वात्, 'ज्ञातवान्' इत्या-कारणग्रहणं तु न युक्त प्रागस्यासम्भवात् । अत एव न तृतीयोपि पक्षो युक्तः, न खलु वर्तमानातीतावुभौ ज्ञानक्षणी ज्ञान ( त ) यन्ती, नापि जानीतः। किं तर्हि ? एको ज्ञातवान् अन्यस्तु जानातीति । चतुर्थपक्षोप्ययुक्तः; अतीतवर्तमानज्ञानक्षणव्यतिरेकेणान्यस्य सन्तानस्यासम्भवात् । कल्पितस्य सम्भवेपि न ज्ञातृत्वम् । न ह्यऽसौ ज्ञान ( त ) वान्पूर्व नाप्यधुना जानाति, कल्पितत्वेनास्याऽवस्तुस्वात् । न चावस्तुनो ज्ञातृत्वं सम्भवति वस्तुधर्मत्वात्तस्य इति अतोऽन्यस्य प्रमातृत्वासम्भवादात्मैव प्रमाता सिद्धयति । इति सिद्धोऽत: प्रत्यभिज्ञानादात्मेति । को जानना उसके लिए शक्य नहीं है, क्योंकि यह जो अतीत ज्ञान क्षण है वह पहले ही नष्ट हो जाने से वर्तमानकाल में नहीं जान रहा है। द्वितीय विकल्प - वर्तमान ज्ञानक्षण उस जोड़ रूप प्रतिभास को जानता है ऐसा मानना भी शक्य नहीं, वर्तमान ज्ञानक्षण केवल "अभी जान रहा हूं" इतने को ही जानता है, “जाना था' इस आकार को ग्रहण कर नहीं सकता, क्योंकि वह पहले नहीं था। अतीत और वर्तमान दोनों ज्ञानक्षण उस जोड़रूप प्रतीति को विषय करते हैं ऐसा तीसरा पक्ष भी जमता नहीं, क्योंकि वे दोनों न ज्ञात हैं ( अतीत में ) और न जान रहे ( वर्तमान में ) किन्तु उन ज्ञानक्षणों में से एक तो "ज्ञातवान् -जाना था" इस प्राकार को लिए हुए है, और दूसरा "जानाति जान रहा है" इस आकार को लिए है । चौथा पक्ष-संतान अहं बुद्धि को विषय करती है ऐसा कहना भी प्रयुक्त है, क्योंकि अतीत और वर्तमान ज्ञान क्षण को छोड़कर अन्य संतान नामा ज्ञानक्षण नहीं है । काल्पनिक संतान मान लेवे तो वह ज्ञाता नहीं होगी। काल्पनिक संतान न पहले ज्ञातवान् है और न वर्तमान ज्ञाता है क्योंकि वह अवस्तुरूप है अवस्तु में ज्ञातृत्व संभव नहीं है, ज्ञातृत्व वस्तु का धर्म है। इसप्रकार अतीत आदि ज्ञानक्षण अहं बुद्धि विषय वाले सिद्ध नहीं हैं अतीतादि क्षणोंको छोड़कर अन्य प्रमाता बन नहीं सकता अतः निश्चित होता है कि प्रात्मा ही प्रमाता है, और वह प्रत्यभिज्ञान द्वारा सिद्ध हो जाता है। ... अब यहां पर क्षणिकवादी बौद्ध आत्मा के विषय में कुचोद्य उठाकर उसके अन्वयीपने का प्रभाव करना चाहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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