________________
१७६
अन्वय्यात्मसिद्धिः यत्प्रतिनियतमसाधारणमात्मस्वरूपं तस्य न स्वभावाभेद: अभेदश्च द्रव्यपर्याययोरिति । किञ्च, पर्यायेभ्यो द्रव्यस्याभेदः, द्रव्यात्पर्यायाणां वा ? प्रथमपक्षे पर्यायवद्रव्यस्याप्यऽनेकत्वानुषङ्गः । तथा हि-यद्वयावृत्तिस्वरूपाऽभिन्नस्वभावं तद्वयावृत्तिमत् यथा पर्यायाणां स्वरूपम्, व्यावृत्तिमद्र पाव्यतिरिक्त च द्रव्यमिति । द्वितीयपक्षे तु पर्यायाणामप्येकत्वानुषङ्गः । तथाहि-यदनुगतस्वरूपाऽव्यतिरिक्त तदनुगतात्मकमेव यथा द्रव्यस्वरूपम्, अनुगतात्मस्वरूपाऽभिन्नस्वभावाश्च सुखादय: पर्यायाः इत्यादि
___ तन्निरस्तम् ; प्रमाणप्रतिपन्ने वस्तुरूपे कुचोद्याऽनवकाशात् । न खलु मदोन्मत्तो हस्ती सन्निहितम् व्यवहितं वा परं मारयति, सन्निहितस्य मारणे मेण्ठस्यापि मारणप्रसंगः । व्यवहितस्य च
विधि प्रतिषेधों का होना अयुक्त है, अर्थात् भेद और अभेद होना युक्त नहीं है । अनुमान से सिद्ध है कि द्रव्य और पर्याय भिन्न नहीं हैं. क्योंकि उनमें अभेद माना है, जहां पर अभेद है वहां पर उससे विपरीत भेद नहीं रहता, जैसे उन पर्यायोंका और द्रव्य का जो प्रतिनियत असाधारण निजी स्वरूप है उसका स्वभाव से भेद नहीं हुग्रा करता, जैन ने द्रव्य और पर्याय में अभेद माना ही है, अत: उनमें अभेद ही रहेगा भेद नहीं रह सकता। दूसरी बात यह है कि जैन पर्यायों से द्रव्य का अभेद मानते हैं कि द्रव्य से पर्यायों का अभेद मानते हैं ? प्रथम पक्ष लेवे तो पर्यायों के समान द्रव्य को भी अनेक होने का प्रसंग पाता है। इसी का खुलासा करते हैं-जो व्यावृत्ति स्वरूप अभिन्न स्वभाव वाला है वह व्यावृत्तिमान ही है, जैसे कि पर्यायों का स्वरूप है, द्रव्य भी व्यावृत्तिमान रूप से अव्यतिरिक्त है इसलिये उसे अनेक माना जायगा। दूसरा पक्ष-द्रव्य से पर्यायों का अभेद है ऐसा माने तो सब पर्यायें एक रूप को प्राप्त होंगी, जो अनुगत स्वरूप होकर अव्यतिरिक्त रहता है वह अनुगतात्मक ही कहलाता है, जैसे द्रव्य स्वरूप अनुगतात्मक है, सुखादि पर्यायें भी अनुगत स्वरूप अभिन्न स्वभाव वाली हैं अतः वे एकरूप हैं । इसतरह जैन मान्यता में भी दोष पाते हैं ?
जैन-बौद्ध का यह कहना भी पूर्वोक्त रीत्या खण्डित हो जाता है, क्योंकि प्रमाण से निश्चित हुए वस्तु स्वरूप में कुचोद्योंको अवकाश नहीं हुया करता है, मदोन्मत्त हाथी के विषय में कोई व्यर्थ के कुचोद्य उठावे कि मत्त हाथी निकटवर्ती को मारता है या दूरवर्ती को मारता है ? निकटवर्ती को मारता है ऐसा कहो तो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org