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कर्मपदार्थ एवं विशेष पदार्थ :
वैशेषिक ने कर्म के पांच भेद किये हैं, कर्म अर्थात् क्रिया, सो क्रिया अनेक प्रकार की हुआ करती है न कि पांच प्रकार को तथा क्रिया पृथक् पदार्थ नहीं है, द्रव्य की परिस्पंदन या हलन चलन रूप अवस्था है ।
विशेष नाम का पदार्थ भी प्रसिद्ध है, प्रत्येक द्रव्य स्वयं अपने में विशेष या असाधारण धर्म को धारण करता है उसके लिये ऊपर से विशेष पदार्थ को जोड़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
समवाय पदार्थ :
समवाय नाम का एक पदार्थ वैशेषिक ने कल्पित किया है जो द्रष्य में गुण को जोड़ देवे द्रव्य उत्पत्ति के प्रथम क्षरण में गुण रहित होता है और द्वितीय क्षण में उसमें समदाय गुणों को सवद्ध करता है। किन्तु यह बात प्रसिद्ध है। प्रथम बात तो यह है कि द्रव्य शाश्वत है वहन उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है। द्रव्य के परिवर्तन को यदि उत्पत्ति कहा जाय तो भी वह परिवर्तन गुण युक्त ही होता है। द्रव्य किसी भी क्षण किसी भी परिवर्तन के समय गुण रहित नहीं होता । अतः गुणों को जोड़ने वाले इस गोंद स्वरूप समवाय नाम के पदार्थ की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती । वैशेषिक समवाय को सर्वथा एक, नित्य, व्यापक मानते हैं वह भी असंभव है। इसका मूल ग्रन्थ में विस्तृत खंडन है ।
फलस्वरूप :
प्रमाण का फल प्रज्ञान निवृत्ति प्रज्ञान का दूर होता है तथा हान बुद्धि, उपादान बुद्धि और उपेक्षा बुद्धि होना भी प्रमाण का फल है । प्रमाण अर्थात् ज्ञान, किसी वस्तु को जब ज्ञान द्वारा जानते हैं तब तद्विषयक अज्ञान ही सर्वप्रथम दूर होता है, पुनश्च यह ज्ञात वस्तु मेरे लिये उपयोगी है या अनुपयोगी इत्यादि निर्णय हो जाया करता है। यह प्रमाण का फल प्रमाण से कथंचित् अभिन्न है, क्योंकि जो जानता है उसी का प्रज्ञान दूर होता है तथा उक्त फल प्रमाण से कथंचित् भिन्न भी है, क्योंकि प्रमाण करण स्वरूप है और फल क्रिया स्वरूप, तथा नाम भेद भी है, अतः संज्ञा लक्षणादि की दृष्टि से प्रमाण और फल में भेद माना है। नैयायिकादि प्रमाण मर फल सर्वथा भेद या सर्वथा प्रभेद मानते हैं, इस मान्यता का मूल में निरसन कर दिया है ।
तदाभास स्वरूप :
प्रमाण के लक्षण जिनमें घटित न हो वे ज्ञान प्रमाणाभास हैं। संशय विपर्यय आदि प्रमाणाभास कहलाते हैं | प्रमाणवत् प्रभासते इति प्रमाणाभासः जो प्रमारण न होकर प्रमाण के समान प्रतीत होता है वह प्रमाणाभास कहलाता है। इसीप्रकार प्रमारण की संख्या मुख्यतया दो हैं इससे अधिक या कम संख्या मानना संख्याभास है। प्रमाण का विषय अर्थात् प्रमाण द्वारा जाना जाने वाला पदार्थ किस रूप है इसमें विवाद है जैन ने
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