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________________ ११६ प्रमेयकमलमार्तण्डे नित्यस्य प्रतिक्षणमनेककार्यकारित्वे क्रमशोनेकस्वभावत्वसिद्धः कथमेकत्वं स्यादिति चेत् ? क्षणिकस्य कथमिति समः पर्यनुयोगः ? स हि क्षणस्थितिरेकोपि भावोऽनेकस्वभावो विचित्रकार्यत्वान्नानार्थक्षणवत् । न हि कारणशक्तिभेदमन्तरेण कार्यनानात्वं युक्तं रूपादिज्ञानवत् । यथैव हि कर्कटिकादौ रूपादिज्ञानानि रूपादिस्वभावभेदनिबन्धनानि तथा क्षणस्थितेरेकस्मात्प्रदीपादिक्षणाद् वर्तिकादाहतैलशोषादिविचित्रकार्यारिण शक्तिभेदनिमित्तकानि व्यवतिष्ठन्ते, अन्यथा रूपादेरपि नानात्वं न स्यात् । ननु च शक्तिमतोऽर्थान्त रानर्थान्तरपक्षयोः शक्तीनामघटनात्तासां परमार्थसत्त्वाभावः; तहि रूपादीनामपि प्रतीति सिद्धद्रव्यादर्थान्तरानर्थान्तरविकल्पयोरसम्भवात्परमार्थसत्त्वाभावः स्यात् । शंका-नित्य पदार्थ प्रतिक्षरण अनेक कार्यों का करता है ऐसा मानने पर उसमें क्रमशः अनेक स्वभावपना सिद्ध होता है, फिर उसका एकपना किस प्रकार रह सकेगा ? समाधान-बिलकुल यही शंका क्षणिक पदार्थ में भी होती है, क्षणिक पदार्थ में अनेक स्वभाव नहीं हैं, ऐसा भी नहीं कह सकेंगे, क्योंकि वह एक क्षण स्थित रहते हुए भी विचित्र-नाना कार्यों का करने वाला होने से अनेक स्वभाव वाला सिद्ध होता है, जैसे नाना क्षणों में अनेक कार्यों को करने से नाना स्वभावत्व सिद्ध होता है। कारण में अनेक शक्ति स्वभाव नहीं होते हुए भी वह नाना कार्यों को करता है ऐसा भी नहीं कहना । क्योंकि जैसे रूप आदि के विभिन्न ज्ञानरूप कार्य विभिन्न स्वभाव भूत रूपादि कारणों से होने से नानारूप हैं । अर्थात् जिस प्रकार ककड़ी आदि वस्तु में रूप, रस आदि के भिन्न भिन्न प्रतिभास रूप रस ग्रादि के स्वभावों में भेद होने के कारण ही होते हैं, उसी प्रकार क्षण मात्र स्थिति वाले प्रदीपादि क्षण से बत्ती का जलाना, तेल का सुखाना-कम करना, इत्यादि विचित्र कार्य शक्ति भेद होने के कारण बन जाते हैं यदि प्रदीपादि में इसप्रकार का नाना शक्तिपना नहीं माने तो रूप रस आदि में भी नानापना सिद्ध नहीं होगा। बौद्ध-यह नाना शक्तियां शक्तिमान पदार्थ से न अर्थान्तर भूत सिद्ध होती हैं और न अनर्थांतर भूत सिद्ध होती हैं अतः इनका परमार्थपने से सत्त्व ही नहीं है। अर्थात् शक्तिमान से अनेक शक्तियों को अर्थांतर मानते हैं तो दोनों का संबंध नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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