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क्षणभंगवादः
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न चात्रान्वयव्यतिरेकानुविधानं घटते । न खलु समर्थे कारणे सत्यभवतः स्वयमेव पश्चाद्भवतस्तदन्वयव्यतिरेकानुविधानं नाम नित्यवत् । 'स्वदेशवत्स्वकाले सति समर्थे कारणे कार्य जायते नासति' इत्येतावता क्षणिकपक्षेऽन्वयव्यतिरेकानुविधाने नित्येपि तत्स्यात्, स्वकालेऽनाद्यनन्ते सति समर्थे नित्ये स्वसमये कार्यस्योत्पत्ते रसत्यऽनुत्पत्तश्च प्रतीयमानत्वात । सर्वदा नित्ये समर्थे सति स्वकाले एव कार्य भवत्कथं तदन्वयव्यतिरेकानुविधायीति चेत् ? तहि कारणक्षणात्पूर्व पश्चाच्चानाद्यनन्ते तदभावेऽविशिष्टे क्वचिदेव तदभावसमये भवत्कार्यं कथं तदनुविधायोति समानम् ?
बौद्ध के क्षणिक पदार्थ में अन्वय व्यतिरेक का अनुविधान ही घटित नहीं होता है, अब इसी को बताते हैं-समर्थ कारण के होने पर तो नहीं होना और पीछे स्वयमेव हो जाना, ऐसा जहां दिखाई देता है वहां अन्यव व्यतिरेक विधान नाम कैसे पा सकता है, अर्थात् क्षणिक पदार्थ एक क्षण रहता है उसके अस्तित्व में तो कार्य उत्पन्न होता नहीं है और पीछे हो जाता है सो कारण के होने पर कार्य होता है [ अन्वय ] और कारण के नहीं होने पर कार्य नहीं होता [ व्यतिरेक ] ऐसा कैसे कह सकते हैं ? अतः जैसे नित्य में कार्य कारण भाव नहीं बनता वैसे क्षणिक में भी नहीं बनता है।
बौद्ध - स्वदेश और स्वकाल में समर्थ कारण के होने पर कार्य होता है और नहीं होने पर नहीं होता, इतना ही कार्य कारण का अन्वय व्यतिरेकपना है ।
जैन-तो फिर क्षणिक की तरह नित्य में भी अन्वय व्यतिरेक का अनुविधान बन सकता है, देखिये-अनादि अनंत जो स्वकाल है उस स्वकाल में समर्थ कारण के होने पर कार्य की उत्पत्ति होती है और समर्थ कारक के नहीं होने पर नहीं होती, इस तरह प्रतीत होता ही है ।
बौद्ध-समर्थ कारण सर्वदा नित्य रहता है फिर स्वकाल में ही कार्य होता हुपा किस प्रकार उसका अन्वय व्यतिरेक घटित होगा ?
___जैन-तो फिर कारण क्षण के पूर्व और उत्तर अनादि अनंत काल में उस कारण का प्रभाव समान रूप से रहते हुए भी मात्र किसी एक अभाव के समय में होता हा कार्य किस प्रकार कारण का अनुविधायी बनेगा ? नहीं बन सकता। इस . तरह नित्य के समान ही भणिक की बात है ।
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