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________________ वेदापौरुषेयत्ववादः ४२७ मीमांसका इत्येवं कर्तृ मात्रे विप्रतिपत्तेर्यदि तदप्रमाणम्, तर्हि तद्वदस्मरणमप्यऽप्रमाणं किन्न स्याद्विप्रतिपत्त रविशेषात् ? तथा चासिद्धो हेतुः । अथ यद्यनुपलम्भपूर्वकमस्मर्यमाणकर्तृ कत्वं हेतुत्वेनोच्येत; तदोक्तप्रकारेणाऽसिद्धानकान्तिकत्वे स्याताम्, तदभावपूर्वके तु तस्मिस्तयोरनवकाशः; न; अत्र कत्रऽभावग्राहकस्य प्रमाणान्तरस्यैवाऽसम्भवात् । अस्मादेवानुमानात्तदभावसिद्धावन्योन्याश्रयः-अतो ह्यऽनुमानात्तदभाव सिद्धौ लत्पूर्वकमस्मर्यमाणकर्तृ कत्वं सिद्धयति, तत्सिद्धौ चातोऽनुमानात्तदभाव सिद्धिरिति । समाधान-यह कथन भी ठीक नहीं, बौद्ध आदि परवादी वेद काका स्मरण होना मानते हैं किन्तु मीमांसक तो स्मरण होना मानते ही नहीं इसप्रकार सामान्य कर्ताके बारे में भी विवाद है ऐसा मानकर उस क के स्मरणको अप्रमाण कहेंगे तो कोई ऐसा भी कह सकता है कि वेदक का अस्मरण अप्रमाणभूत है, क्योंकि उसमें विवाद है। इसतरह वेदकर्त्ता का स्मरण होना और स्मरण नहीं होना इन दोनोंमें विवाद ही रह जाता है अतः मीमांसक द्वारा दिया हुया अस्मर्यमाणकर्तृत्व नामा हेतु प्रसिद्ध होता है । मीमांसक-वेद अपौरुषेय है, क्योंकि उसके कर्ताका अस्मरण है, इस अनुमान के अस्मर्यमाणकर्तृत्व हेतुको यदि अनुपलंभरूपसे सिद्ध किया जाता है अर्थात् कर्ताके स्मरणका अनुपलंभ होनेसे अस्मर्यमाण कर्तृत्व है, ऐसा माना जाय तब तो वह हेतु असिद्ध एवं अनैकान्तिक हो सकता है किन्तु कर्ताके स्मरणका अभाव होनेसे अस्मर्यमाणकर्तृत्व है ऐसा मानेंगे तब असिद्धादि दोष नहीं आते हैं। जैन-यह कथन ठीक नहीं, क्योंकि वेदक के अभावको ग्रहण करनेवाला कोई प्रमाणान्तर संभव नहीं है, यदि इसी अस्मर्यमाण कर्तृत्व हेतु वाले अनुमान द्वारा वेदकर्ताका अभाव सिद्ध करेंगे तो अन्योन्याश्रय होगा-अस्मर्यमाण कर्तृत्व हेतुसे कर्ताका अभाव सिद्ध होनेपर उसके प्रभाव पूर्वक होनेवाला अस्मर्यमारण कर्तृत्व सिद्ध होगा और उसके सिद्ध होने पर इस अनुमानसे कर्ताका अभाव सिद्ध होवेगा, इस तरह दोनों असिद्ध कोटीमें रह जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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