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________________ ४११ ४११ अविनाभावादीनां लक्षणानि नास्त्यत्र शिंशपा वृक्षाऽनुपलब्धेः ॥८॥ कार्यानुपलब्धिर्यथानास्त्यत्राऽप्रतिबद्धसामोऽग्निधूमानुपलब्धेः ॥८१॥ नास्त्यत्र धूमोऽनग्नेः ।।८२॥ इति कारणानुपलब्धिः। न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं कृचिकोदयानुपलब्धेः ।।८३।। इति पूर्वचरानुपलब्धिः । नोदगादरणिमुहर्चात्प्राक् तत एव ॥८४॥ कृत्तिकोदयानुपलब्धेरेव । इत्युत्तरचरानुपलब्धिः । नास्त्यत्र शिशपा वृक्षानुपलब्धः ।।८०॥ सूत्रार्थ-यहां पर शिशपा नहीं है क्योंकि वृक्षकी अनुपलब्धि है । कार्यानुपलब्धि तथा कारणानुपलब्धिका उदाहरण नास्त्यत्रा प्रतिबद्ध सामोऽग्निधूमानुपलब्धेः ।।८।। ____नास्त्यत्र धूमोऽनग्नेः ।।८२॥ सूत्रार्थ-यहां अप्रतिबद्ध सामर्थ्यवाली अग्नि नहीं, क्योंकि धूमकी अनुपलब्धि है । तथा-यहां धूम नहीं क्योंकि अग्निकी अनुपलब्धि है। पूर्वचर अनुपलब्धिहेतुका उदाहरण न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं कृतिकोदयानुपलब्धेः ॥३॥ सूत्रार्थ-एक मुहूर्त्तके अनंतर रोहिणीका उदय नहीं होगा, क्योंकि कृतिकोदयकी अनुपलब्धि है। उत्तरचर अनुपलब्धि हेतुका उदाहरण नोदगाद् भरणिर्मुहूर्तात् प्राक् तत एव ।।४।। सूत्रार्थ--एक मुहूर्त पहले भरणिका उदय नहीं हुअा था क्योंकि कृतिकोदय की अनुपलब्धि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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