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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
"कार्यकारणभावादिसम्बन्धानां द्वयी गतिः । नियमानियमाभ्यां स्यादनियमादनङ्गता ॥ १ ॥ सर्वेप्यनियमा ह्येते नानुमोत्पत्तिकारणम् । नियमात्केवलादेव न किञ्चिन्नानुमीयते ॥ २ ॥ " [ 1
ततः शरीरनिर्वर्त्तं काऽदृष्टादिकारणकलापादरिष्टकरतल रेखादयो निष्पन्नाः भाविनो मरणराज्यादेरनुमापका इति प्रतिपत्तव्यम् ।
जाग्रबोधस्तु प्रबोधबोधस्य हेतुरित्येतत्प्रागेव प्रतिविहितम्, स्वापाद्यवस्थायामपि ज्ञानस्य प्रसाधितत्वात् । ततो भाव्यतीतयोर्म र जाग्रद्द्बोधयोरपि नारिष्टोद्बोधौ प्रति हेतुत्वम्, येनाभ्यामनैकान्तिको हेतुः स्यादित्ति स्थितम् ।
रहित होकर भी केवल स्वसाध्यके अविनाभावी होनेके कारण गमक-स्व स्व साध्यको सिद्ध करने वाले होते हैं । अतः अविनाभाव के निमित्तसे हेतुका गमकपना निश्चित होता है ।
जैसा कि कहा है - कार्यकारणभाव आदि संबंधोंकी दो गति हैं प्रर्थात् दो प्रकार है एक नियमरूप संबंध ( अविनाभाव ) और एक अनियमरूप संबंध, यदि हेतुमें अनियमत्व है तो वह अनुमानका कारण नहीं हो सकता ||१|| वक्तृत्वादि उक्त सभी हेतु नियमरूप हैं अतः अनुमानके उत्पत्ति में कारण नहीं हैं, तथा केवल विनाभावरूप नियमवाले हेतुसे ऐसा कोई साध्य नहीं है कि जो अनुमानित नहीं होता हो । अर्थात् मात्र नियमरूप हेतुसे अनुमानकी उत्पत्ति अवश्य होती है किन्तु नियम रहित हेतु चाहे तादात्म्यादि से युक्त हो तो भी उससे अनुमान प्रादुर्भूत नहीं होता ||२||
इसलिये निश्चय होता है कि अरिष्ट करतल रेखा आदि, शरीरकी रचना करनेवाले प्रदृष्ट- कर्म आदि कारण समूहसे उत्पन्न होते हैं और वे भावी मरण और राज्यादिके अनुमापक ( अनुमान करनेवाले) होते हैं ।
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ऐसे मंतव्यका निराकरण वहां पर निद्रादि अवस्थामें
जाग्रद्बोध प्रबोध अवस्थाके बोधका हेतु होता है तो पहले ही ( मोक्षविचार नामा प्रकरण में ) कर दिया है, ज्ञानका सद्भाव होता है ऐसा सिद्ध हो चुका है, अतः "निद्रा कालके जागकर उठनेके अनंतर होनेवाले ज्ञानका हेतु होता है अभाव रहता है इसलिये काल व्यवधान वाले पदार्थोंमें भी कार्यकारणभाव है " इत्यादि
लेने के पहले ज्ञान प्रातः अंतराल कालमें ज्ञानका
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