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________________ ३६६ अविनाभावादीनां लक्षणानि यथा च पूर्वोत्तरचारिणोर्न तादात्म्यं तदुत्पत्तिर्वा तथा सहचारिणोरपि परस्परपरिहारेणावस्थानात्सहोत्पादाच्च ॥६४॥ ययोः परस्परपरिहारेणावस्थानं न तयोस्तादात्म्यम् यथा घटपटयोः, परस्परपरिहारेणावस्थानं च सहचारिणोरिति । एककालत्वाच्चानयोर्न तदुत्पत्तिः । ययोरेककालत्वं न तयोस्तदुत्पत्तिः यथा सव्येतरगोविषाणयोः, एककालत्वं च सहचारिणोरिति । न चास्वाद्यमानाद्र सात्सामग्रयनुमानं ततो रूपानुमानमनुमितानुमानादित्यभिधातव्यम्; तथा व्यवहाराभावात् । न हि आस्वाद्यमानाद्रसाद् व्यवहारी सामग्रीमनु मिनोति, रससमसमयस्य रूप कथन असत्य सिद्ध होता है । इसप्रकार "भावी मरण और अतीत आग्रद् बोध क्रमशः अरिष्ट तथा उद्बोधके हेतु होनेसे जैनका कारण हेतुका लक्षण अनेकांतिक होता है" ऐसा बौद्धका प्रतिपादन खंडित होगया। जैसे पूर्वचर और उत्तरचर हेतुमें तादात्म्य तदुत्पत्ति संबंध नहीं होता वैसेसहचारिणोरपि परस्पर परिहारेणावस्थानात्सहोत्पादाच्च ।।६४।। सूत्रार्थ–सहचरभूत साध्यसाधनोंमें भी तादात्म्य और तदुत्पत्ति संबंध नहीं हो सकता क्योंकि ये परस्परका परिहार करके अवस्थित रहते हैं तथा युगपत् प्रादुर्भूत होते हैं। जिन दो पदार्थोंका परस्पर परिहार करके अवस्थान होता है उनमें तादात्म्य नहीं होता, जैसे घट और पट में तादात्म्य नहीं है, सहचारि पदार्थभी परस्पर परिहार करके अवस्थित हैं अतः इनमें तादात्म्य नहीं हो सकता। तथा सहचारी पदार्थोंमें एक काल भाव होनेसे तदुत्पत्ति संबंध ( उससे उत्पन्न होना रूप कार्यकारण संबंध ) भी असंभव है । जिनमें एक कालत्व होता है उनमें तदुत्पत्ति संबंध नहीं होता जैसे गायके दायें बायें सींगमें नहीं होता, सहचारी साध्यसाधनमें एक कालत्व है अतः तदुत्पत्ति नहीं हो सकती। बौद्धका जो यह कहना है कि प्रास्वादनमें आ रहे रससे सामग्रीका अनुमान होता है और उस सामग्रीके अनुमानसे रूपका अनुमान होता है अतः रूपानुमान अनुमितानुमान कहलाता है, सो वह असत् है क्योंकि उस प्रकारका व्यवहार देखने में नहीं आता। व्यवहारी जन आस्वाद्यमानरससे सामग्रीका अनुमान नहीं करते अपितु रसके समकालमें होनेवाले रूपका इसके द्वारा अनुमान होता है। ग्राप भी व्यवहारके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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