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________________ प्रमेयकमलमार्तण्डे इष्टमवाधितमसिद्ध साध्यम् ।।२०॥ संशयादिव्यवच्छेदेन हि प्रतिपन्नमर्थस्वरूपं सिद्धमुच्यते, तद्विपरीतमसिद्धम् । तच्च सन्दिग्धविपर्यस्ताव्युत्पन्नानां साध्यत्वं यथा स्यादित्यसिद्धपदम् ।।२१।। किमयं स्थाणुः पुरुषो वेति चलितप्रतिपत्तिविषयभूतो ह्यर्थः सन्दिग्धोभिधीयते । शुक्तिकाशकले रजताध्यवसायलक्षण विपर्यासगोचरस्तु विपर्यस्तः । गृहीतोऽगृहीतोपि वार्थो यथावदनिश्चितस्वरूपोऽव्युत्पन्नः। तथाभूतस्यैवार्थस्य साधने साधनसामर्थ्यात्, न पुनस्तद्विपरोतस्य तत्र त फल्यात् । इष्टाऽबाधित विशेषणद्वयस्यानिष्टेत्यादिना फलं दर्शयति अनिष्टाध्यक्षादिवाधितयोः साध्यत्वं माभूदितीष्टाबाधितवचनम् ।।२२।। इष्टमबाधितमसिद्ध साध्यम् ।।२०।। इष्ट अबाधित और असिद्धभूत पदार्थको “साध्य" कहते हैं। जो पदार्थ वादीको अभिप्रेत हो उसे इष्ट कहते हैं। किसी प्रमाणसे बाधित नहीं होना अबाधित है और अप्रतिपन्नभूत पदार्थको प्रसिद्ध कहते हैं । संशयादिका व्यवच्छेद करके पदार्थका स्वरूप ज्ञात होना "सिद्ध" कहलाता है और इससे विपरीत प्रसिद्ध है। सन्दिग्धविपर्यस्ताव्युत्पन्नानां साध्यत्वं यथा स्यादित्य सिद्धपदम् ॥२१॥ सुत्रार्थ- संदिग्ध, विपरीत एवं अव्युत्पन्न पदार्थ साध्यरूप हो सके इस हेतुसे साध्यका लक्षण करते समय "असिद्ध पदका" ग्रहण किया है। "यह स्थाणु है या पुरुष है" इसप्रकार चलित प्रतिपत्तिके विषयभूत अर्थको “संदिग्ध" कहते हैं। सीपके टुकड़ेमें चांदीका निश्चय होना रूप विपर्यास के गोचरभूत पदार्थको “विपर्यस्त” कहते हैं । गृहीत अथवा अगृहीत पदार्थ जब यथावत् निर्णीत नहीं होता तब उसे "अव्युत्पन्न" कहते हैं । इन तीन प्रकारके पदार्थों की सिद्धि करने में ही हेतुकी सामर्थ्य होती है इनसे विपरीत पदार्थोंकी सिद्धि करने में नहीं। क्योंकि असंदिग्ध आदि पदार्थोके लिये अनुमान की आवश्यकता नहीं रहती वे तो सिद्ध ही रहते हैं । अब साध्यके इष्ट और अबाधित इन दो विशेषणोंकी सफलता दिखलाते हैंअनिष्टाध्यक्षादिबाधितयोः साध्यत्वंमाभूदितीष्टाबाधितवचनम् ॥२२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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