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अविनाभावादीनां लक्षणानि पूर्वोत्तरचारिणोः कार्यकारणयोश्च क्रमभावः ॥१८॥ सहचारिणो रूपरसादिलक्षरणयोप्प्यव्यापकयोश्च शिशपात्ववृक्षत्वादिस्वभावयोः सहभावः प्रतिपत्तव्यः। पूर्वोत्तरचारिणोः कृतिकाशकटोदयादिस्वरूपयोः कार्यकारणयोश्चाग्निधूमादिस्वरूपयोः क्रमभाव इति । कुतोसौ प्रोक्तप्रकारोऽविनाभावो निर्णीयते इत्याह---
___ तर्काचनिर्णयः ।।१९।। न पुनः प्रत्यक्षादेरित्युक्त तर्कप्रामाण्यप्रसाधनप्रस्तावे। ननु साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानमित्युक्तम् । तत्र किं साध्यमित्याह
पूर्वोत्तर चारिणोः कार्यकारणयोश्च क्रमभावः ।।१८।।
सूत्रार्थ-सहचारीरूप रसादिमें और व्याप्य व्यापक पदार्थोंमें सहभाव अविनाभाव होता है। पूर्व और उत्तर कालभावी पदार्थों में तथा कार्य कारणोंमें क्रमभाव अविनाभाव होता है । रूप रसादि सहचारी कहलाते हैं, वृक्षत्व और शिशपात्वादि व्याप्यव्यापक कहलाते हैं, इनमें सहभाव पाया जाता है। कृतिका नक्षत्रका उदय और रोहिणी नक्षत्रका उदय आदि पूर्वोत्तर चारी कहलाते हैं एवं धूम और अग्नि ग्रादि कार्य कारण कहलाते हैं इनमें क्रमभाव पाया जाता है।
इस अविनाभावका निर्णय किस प्रमाणसे होता है ऐसा प्रश्न होने पर उत्तर देते हैं
तर्कात् तन्निर्णयः ।।१६।। सूत्रार्थ-अविनाभाव संबंधका निश्चय तर्क प्रमाणसे होता है। प्रत्यक्षादि प्रमाणसे अविनाभावका निर्णय नहीं होता ऐसा पहले तर्क ज्ञानकी प्रमाणता सिद्ध करते समय कह पाये हैं।
शंका-साधनसे होनेवाले साध्यके ज्ञानको अनुमान कहते है ऐसा प्रतिपादन तो हो चुका किन्तु साध्य किसे कहना यह नहीं बताया है ?
समाधान- अब इसी साध्यका लक्षण कहते हैं
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