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________________ MDADDDDDDDDDias 《KEE अविनाभावादीनां लक्षणानि MEERINEERRRRRRRRRRRRRRRRRC ननु चास्तु प्रधानं लक्षणमविनाभावो हेतोः । तत्स्वरूपं तु निरूप्यतामप्रसिद्धस्वरूपस्य लक्षणत्वायोगादित्याशंकय सहक्रमेत्यादिना तत्स्वरूपं निरूपयति ___ सहक्रमभावनियमोऽविनाभावः ॥१६॥ सहभावनियमः क्रमभावनियमश्चाविनाभावः प्रतिपत्तव्यः । कयोः पुनः सहभावः कयोश्च क्रमभावो यनियमोऽविनाभावः स्यादित्याह सहचारिणोः व्याप्यव्यापकयोश्च सहभावः ॥१७॥ ___ शंका-हेतुका प्रधान लक्षण अविनाभाव है यह बात तो ठीक है किन्तु अविनाभावके स्वरूपका निरूपण भी करना होगा, क्योंकि अप्रसिद्ध स्वरूपवाली वस्तु किसीका लक्षण नहीं बन सकती ? समाधान- अब इसी शंकाको लक्ष्य करके अविनाभावका स्वरूप बताते हैं ___ सहक्रमभावनियमोऽविनाभावः ॥१६॥ सूत्रार्थ- सहभाव नियम और क्रमभाव नियम ऐसे अविनाभाव के दो भेद हैं, युगपत् रहने का नियम सहभाव अविनाभाव है और क्रमशः रहनेका नियम क्रमभाव अविनाभाव है ये दोनों अविनाभावके लक्षण या स्वरूप समझने चाहिए। किन दो पदार्थों में सहभाव होता है और किन दो में क्रमभाव होता है ऐसा अविनाभाव नियमके विषयमें प्रश्न होने पर कहते हैं सहचारिणोः व्याप्यव्यापकयोश्च सहभावः ।।१७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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