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[ ३० ] विषय बौद्ध-जिनमें संकेत नहीं किया वे शब्द अर्थाभिधायक होते हैं अथवा संकेत वाले शब्द अर्थाभिधायक होते हैं....
५५६ गोत्व आदि सामान्य रूप जाति में शब्दों का संकेत होता है ऐसा दूसरा विकल्प भी असत् है.... ५६१ जेन- संकेत किये जानेपर ही शब्द अर्थाभिधायक होते हैं....
५६३ उत्पन्न हुए पदार्थोंमें संकेत होना संभव है....
५६६ विशद प्रतिभास और प्रविशद् प्रतिभास सामग्रीके भेदसे होता है....
५६८ जो जहांपर व्यवहारको उत्पन्न करता है वह उसका विषय होता है....
५६६ अग्निकी प्रतीतिका कार्य स्फोट आदि होना नहीं है....
५७१ संपूर्ण वचन विवक्षामात्रको कहते हैं ऐसा माने तो....
५७४ यदि शब्दको अप्रवर्तक मानेंगे तो प्रत्यक्षादिको भो अप्रवर्तक मानना होगा ...
५७६ अभिप्राय अनंत होनेसे शब्द द्वारा अभिप्राय को जानना अशक्य है....
५७८ साधारणता और निर्देश्यता भी वस्तुका निजी स्वरूप है....
५७६ सारांश
५८१-५८२ स्फोट वादः
५८३-६०३ पूर्वपक्ष-वर्ण पदादिसे व्यक्त होने वाला नित्य व्यापक ऐसा स्फोट है वही अर्थोंका वाचक है शब्द नहीं....
५८३ स्फोट श्रोत्रज्ञानमें निरंश एवं अक्रमरूप प्रतिभासित होता है.... उत्तरपक्ष जेन- स्फोटसे अर्थ प्रतीति नहीं होती अपितु पूर्व वर्णसे विशिष्ट ऐसे अंतिम वर्ण द्वारा अर्थ प्रतीति होती है.... पूर्व वर्ण के ज्ञानसे उत्पन्न हुआ संस्कार प्रवाह रूपसे अंतिम वर्णको सहायताको प्राप्त होता है....
५८८ आपने संस्कार तीन प्रकारका माना है वेग, वासना, स्थित स्थापक.... वर्ण द्वारा स्फोटका संस्कार किया जाता है तो वह एक देशसे या सर्वदेशसे....
५६२ स्फोटका अभिव्यंजक संस्कार न होकर वायु है ऐसा कहना भी अयक्त है....
५९४ यदि शब्दका स्फोट अर्थप्रतीतिमें निमित्त माना जाय तो गंधका स्फोट, रस का स्फोट इत्यादि भी मानने होंगे ...
५६६ सारांश
६०२ वाक्य लक्षण विचारः
६.४-६२० परस्परमें सापेक्ष किन्तु वाक्यांतर गत पदसे निरपेक्ष ऐसे पदसमूहको वाक्य कहते हैं.... ६०४
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