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________________ ४६२ ५०५ ५२६ [ २६ ] विषय तालु प्रादि प्रथवा ध्वनियां शब्दों के व्यंजक कारण नहीं अपितु कारक कारण है.... ४८१ शब्द संस्कार, श्रोत्र संस्कार और उभय संस्कार इस प्रकार शब्द के लिये तीन संस्कार मानना भी प्रसिद्ध है.... मीमांसक शब्द को सर्वगत मानते हैं अतः उनका आवरण होने का कथन सिद्ध नहीं होता.... एक ही व्यंजक द्वारा अनेक व्यंग्यभूत पदार्थों का प्रकाशन होता है.... दर्पणादि पदार्थ स्वसामग्री के अभाव में उक्त आकारों को हमेशा धारण नहीं करते.... ५१३ जैन की मान्यता है कि शब्द श्रोता के पास जाता है... अदृष्ट की कल्पना करना रूप दोष तो मीमांसक के पक्ष में ही आता है.... ५१८ सारांश ५२१-५२२ शब्द संबंध विचारः ५२३-५३३ सहज योग्यता के कारण शब्द अर्थ की प्रतीति कराते हैं.... शब्द और अर्थ का वाच्य वाचक सम्बन्ध अनित्य है.... ५२५ संकेत पुरुष के प्राश्रित होता है.... यह शब्दार्थ का नित्य सम्बन्ध इन्द्रियगम्य है अथवा.... ५३० शब्द अपने अर्थ को स्वयं नहीं कहते.... ५३२ अपोहवादः ५३४-५८२ बौद्ध-पदार्थ के अभाव में भी शब्द उपलब्ध होते हैं अतः वे अर्थ के प्रतिपादक नहीं हैं, शब्द तो अन्य अर्थ का अपोह करते हैं। जैन-सभी शब्द अर्थ के अभाव में नहीं होते.... ५३५ शब्द केवल अन्यापोह के ही वाचक हैं ऐसा मानना प्रतीति विरुद्ध है.... बौद्ध मत में शब्द का वाच्य जो अपोह सामान्य माना है सो वह ... ५३० बौद्ध–'अगो' इस पद में स्थित जो गो शब्द है उस गो शब्द से जिस गो अर्यका निषेध किया जाता है वह विधि रूप है.... ५४५ जैन-यदि ऐसी बात है तो सभी शब्द का अर्थ अपोह हो है ऐसा कहना व्यर्थ है.... गो शब्द अश्व शब्द इत्यादि शब्दों द्वारा वाच्य होने वाले अपोहों में परस्पर में विलक्षणता है या.... ५५२ आप बौद्ध के यहां कर्ण ज्ञान में प्रतिभासित होने वाला स्वलक्षण रूप शब्द अर्थ का वाचक हो नहीं सकता.... अपोह शब्द द्वारा वाच्य है या अवाच्य... ५५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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