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________________ ४२. [२८] विषय पृष्ठ अविरुद्धोपलब्धि हेतु के छह भेद उदाहरण सहित ४००-४.३ विरुद्धोपलब्धि हेतु के छह भेद सोदाहरण.... ४०४-४०६ अविरुद्ध-अनुपलब्धि हेतु के सोदाहरण सात भेद.... ४०६-४१२ विरुद्ध अनुपलब्धि हेतु के सोदाहरण तीन भेद ४१२-४१३ परंपरा रूप हेतुओं का अन्तर्भाव.... ४१४-४१५ हेतुओं का चार्ट ४१८ वेद अपौरुषेयवादः ४१६ से ४५६ प्रागम प्रमाण का लक्षण ४१६ आगम को अपौरुषेय मानने वाले प्रवादी की शंका प्रत्यक्ष प्रमाण से अपौरुषेय वेद की सिद्धि नहीं होती.... ४२१ अनुमान प्रमाण से भी नहीं.... ४२२ कर्ता का अस्मरण होने से वेद को अपौरुषेय मानते हैं ऐसा मीमांसक का कथन अयुक्त है.... ४२५ वेद का अध्ययन गुरु अध्ययन पूर्वक होता है....इत्यादि अनुमान असत् है.... ४३४ पागम प्रमाण द्वारा भी वेद की अपौरुषेयता सिद्ध नहीं.... ४४१ वेद के व्याख्याता पुरुष प्रतीन्द्रिय पदार्थ के ज्ञाता है अथवा नहीं...मनुष्य द्वारा रचित शब्दों के समान ही वेद में शब्द पाये जाते हैं अतः वेद पुरुष रचित पौरुषेय है.... ४५० सारांश ४५५-४५६ शब्द नित्यत्ववाद: ४५७ शब्दों को नित्य मानने में मीमांस मीमांसक-शब्द नित्य है, क्योंकि अपने वाच्यार्थ की प्रतिपादन की अन्यथानुपपत्ति है .... ४५७ सादृश्य शब्द से अर्थ की प्रतोति मानना ठीक नहीं.... ४५६ जैन द्वारा उक्त मीमांसक के पक्ष का निराकरण.... ४६७ अर्थप्रतिपादकत्व की अन्यथानुपपत्तिरूप मीमांसक का हेतु प्रयुक्त है.... यदि सदृश शब्द द्वारा अर्थ प्रतिपादकत्व होना नहीं मानते तो सदृश धूम द्वारा पर्वतादि में अग्नि को सिद्ध करना भी नहीं मान सकते.... ७. उदात्तादि धर्म शब्द के न कि ध्वनियों के.... ४८. Jain Education International For Private &Personal use only . www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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