________________
पृष्ठ २८३
२८४
३०८ ३१२
[ २७ ] विषय मीमांसक-प्रत्यभिज्ञानको प्रत्यक्ष स्वरूप मानता है, उसका पक्ष.... जैन द्वारा उसका खंडन.... बौद्ध प्रत्यभिज्ञानको नहीं मानेंगे तो नैरात्म्य भावनाका अभ्यास नहीं बनेगा....
२८६ प्रत्यभिज्ञान अनुमान प्रमाण रूप नहीं मान सकते....
२६६ मीमसांक का सादृश्य प्रत्यभिज्ञान को उपमारूप सिद्ध करने का प्रयास
२९७ तर्कस्वरूप विचार
३.४-३१६ तर्कप्रमाणको प्रत्यक्ष में अंतर्भूत करनेका पक्ष.... तर्क के विषयभूत व्याप्तिका ज्ञान मानस प्रत्यक्ष द्वारा भी संभव नहीं.... हेतोस्त्ररूप्य निरास
३२०-३२६ अनुमान प्रमाण का लक्षण ....
३२० हेतु का लक्षण त्ररूप्य है ऐसी बौद्ध मान्यता का निरसन करते हुए निर्दोष हेतु का लक्षण कहते हैं ...
३२१ सपक्ष सत्व रूप लक्षण के नहीं रहते हुए भी हेतु का अन्वय बन सकता है....
३२८ हेतोः पाञ्चरूप्य खण्डनम् .... हेतुको पांचरूप मानने वाले यौग का पक्ष ...
३३० साध्याविनाभावित्व के विना अबाधितविषयत्वादि हेतु के लक्षण असंभव है... पूर्ववदाद्यनुमानत्रैविध्य निरास....
३४६-३६३ योग के यहां पूर्ववत्, शेषवत्, सामान्यतोष्ट ऐसे अनुमान के तीन भेद माने हैं....
३४६ व्याप्ति तीन प्रकार की है....
३५३ अविनाभाव के दो भेदों का लक्षण ... साध्य का लक्षण .
३६६ साध्य के इष्ट और अबाधित इन दो विशेषणों की सार्थकता.... धर्मी का ही पक्ष यह नाम है और वह प्रसिद्ध होता है....
३६-३७. पक्ष प्रयोग की अावश्यकता ...
३७४-३७६ अनुमान के दो हो अंग हैं.... उदाहरण अनुमान का अंग नहीं....
३७७-३८२ दृष्टान्त एवं उपनय, निगमन के लक्षण....
३८४ अनुमान के दो भेद-स्वार्थानुमान परार्थानुमान
३८५ उपलब्धि और अनुपलब्धिरूप हेतु....
३८८ पूर्व चरादि हेतुनों का कार्य हेतु में अन्तर्भाव नहीं हो सकता....
३६१ से ३९६ तक
FREEEEEEEEEEEEEEEEEER
३३२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org