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________________ SSSSS १० तर्कस्वरूप विचारः ieeeeeeeeOCOREEEEEEEEEEEEÜ अथेदानीमूहस्योपलम्भेत्यादिना कारणस्वरूपे निरूपयति उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः || ११|| उपलम्भानुपलम्भी साध्यसाधनयोर्यथाक्षयोपशमं सकृत पुनः पुनर्वा दृढतरं निश्चयानिश्चयों न भूयोदर्शनादर्शने । तेनातीन्द्रियसाध्यसाधनयोरागमानुमान निश्चयानिश्चयहेतुक सम्बन्धबोधस्यापि सङ्ग्रहान्नाव्याप्तिः । यथा 'अस्त्यस्य प्राणिनो धर्मविशेषो विशिष्टसुखादिसद्भावान्यथानुपपत्तेः ' इत्यादी, 'आदित्यस्य गमनशक्तिसम्बन्धोऽस्ति गतिमत्त्वान्यथानुपपत्ते:' इत्यादौ च । न खलु अब यहां पर तर्क प्रमाणके कारणका तथा स्वरूपका वर्णन करते हैं— उपलंभानुपलंभनिमित्त ं व्याप्तिज्ञानमूहः ।। ११ । । सूत्रार्थ - उपलंभ [ साध्यके होने पर साधन का होना ] तथा अनुपलंभ [ साध्य के प्रभाव में साधन का नहीं होना ] के निमित्त से होने वाले व्याप्ति ज्ञानको तर्क कहते हैं । व्याप्तिज्ञानके दो कारण हैं - एक प्रत्यक्ष उपलंभ और एक अनुपलंभ | अग्नि के होने पर धूमके होने का ज्ञान प्रत्यक्ष है और अग्निके अभाव में धूम के प्रभाव का ज्ञान अनुपलंभ है । इन ग्रग्नि और धूमादि रूप साध्य साधनों का क्षयोपशम के अनुसार एक बार में अथवा अनेक बार में दृढ़तर निश्चय अनिश्चय होना उपलंभ अनुपलभ कहलाता है, अर्थात् इस अग्निरूप साध्य के होने पर ही यह धूमरूप साधन होता है और साध्य के न होने पर साधन भी नहीं होता ऐसा दृढ़तर ज्ञान होना उपलंभ अनुपलंभ है । साध्य साधन का बार बार प्रत्यक्ष होना उपलंभ है और उनका प्रत्यक्ष न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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