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________________ २८६ प्रमेयकमलमार्तण्डे स्यात् । यदि च स्मतिविषयस्वभावतया दृश्यमानोर्थः प्रत्यक्षप्रत्ययैरवगम्येत तहि स्मतिविषयः पूर्वस्वभावो वर्तमानतया प्रतिभातीति विपरीतख्यातिः सर्वं प्रत्यक्षं स्यात् । अव्यवधानेन प्रतिभासनलक्षणवैशद्याभावाच्च न प्रत्यभिज्ञानं प्रत्यक्षम् इत्यलमतिप्रसंगेन । __तच्च तदवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादिप्रकारं प्रतिपत्तव्यम् । तदेवोक्तप्रकारं प्रत्यभिज्ञानमुदाहरणद्वारेणाखिलजनावबोधार्थ स्पष्टयति यथा स एवायं देवदत्तः ॥६॥ गोसदृशो गवयः ॥७॥ गोविलक्षणो महिषः ॥८॥ इदमस्माद्द रम् ।।९।। वृक्षोयमित्यादि ॥१०॥ दृश्यमान वर्तमान का पदार्थ स्मृति के विषय के स्वभाव रूप से प्रत्यक्ष ज्ञानों द्वारा अवभासित होता है तो स्मृति के विषयभूत पूर्व स्वभाव वर्तमान रूप से अवभासित होना भी मान सकते हैं, इस प्रकार सभी प्रत्यक्ष विपरीत ख्याति रूप हो जायेंगे। अव्यवधान से प्रतिभासित करना रूप वैशद्य का अभाव होने से भी प्रत्यभिज्ञान प्रत्यक्षप्रमाण रूप सिद्ध नहीं होता है, अब इस विषय पर अधिक नहीं कहते । ___ इस प्रत्यभिज्ञान के वही यह है, यह उसके समान है, यह उससे विलक्षण है, यह उसका प्रतियोगी है, इत्यादि भेद हैं। अब इन्हीं प्रत्यभिज्ञानों के उदाहरण सभी को समझ में आने के लिये दिये जाते हैं यथा स एवायं देवदत्तः, गो सदृशो गवयः, गोविलक्षणो महिषः इदमस्माद् दूरं वृक्षोय मित्यादि ॥६॥ सूत्रार्थ-जैसे वही देवदत्त यह है, गो सदृश रोझ होती है, गो से विलक्षण भैंस होती है, यह इससे दूर है, यह वृक्ष है इत्यादि क्रमशः एकत्व प्रत्यभिज्ञान, सादृश्य प्रत्यभिज्ञान, वैलक्षण्य प्रत्यभिज्ञान, प्रतियोगी प्रत्यभिज्ञान और सामान्य प्रत्यभिज्ञान के उदाहरण समझने चाहिये । बौद्ध - "यह वही देवदत्त है" इत्यादि प्रत्यभिज्ञान एक ज्ञान रूप नहीं है । "वह" ऐसा उल्लेख तो स्मरण है और “यह" ऐसा उल्लेख प्रत्यक्ष ज्ञान रूप है, इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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