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________________ [ ११ ] .." स्त्रीमुक्तिविचार - उपर्युक्त मोक्ष की प्राप्ति पुरुष को होती है वर्तमान में जो जीव स्त्री का शरीर धारण किये हुए है उसको मोक्ष नहीं हो सकता, क्योंकि संयम एवं ध्यान को स्त्री उत्कृष्ट रूप से धारण नहीं कर सकती, वस्त्र त्याग करना असंभव होने से तज्जन्य हिंसा भी अनिवार्य है । श्वेतांबर स्त्री को मुक्ति होना स्वोकार करते हैं और उसके लिये "पुवेदं वेदंता' इत्यादि आगमोक्त गाथा को प्रमाण रूप से उपस्थित करते हैं किन्तु वह असत् है, उक्त गाथा भाव वेद की अपेक्षा प्रतिपादन कर रही है न कि द्रव्यवेद की अपेक्षा । अतः यह निश्चय करना चाहिये कि स्त्री को उसी भव से उसी स्त्री लिंग रूप द्रव्य आकारधारी शरीर से मोक्ष प्राप्ति होना अशक्य है, हां स्त्री पर्याय से अपने योग्य तपश्चरण करके ग्रागामी भव में पुरुष लिंग धारण कर पूर्ण संयमी दिगम्बर मुनि बनकर वह मोक्ष जा सकती है । स्मृतिप्रामाण्यवाद - बौद्धादिवादी स्मृतिज्ञान को प्रामाणिक नहीं मानते किन्तु यह मान्यता असत् है, स्मृतिज्ञान को सत्य नहीं माना जाय तो जगत का लेन देन का कार्य समाप्त होगा, अभ्यास भावना विद्यार्थी का विद्याध्ययन आदि संपूर्ण कार्य सिद्ध नहीं हो सकेंगे, तथा किसी किसी विषय में स्मरण ज्ञान व्यभिचरित होता है अर्थात् सत्य सिद्ध होता है इसलिये उस ज्ञान को सर्वथा अप्रमाण माना जाय तो प्रत्यक्षादि ज्ञान को भी श्रप्रमाण मानना होगा ? क्योंकि यह भी क्वचित कदाचित् व्यभिचरित होता है । प्रत्यभिज्ञान - स्मृति के समान प्रत्यभिज्ञान को भी बौद्ध स्वीकार नहीं करते, मीमांसकादि यद्यपि इसे स्वीकार करते हैं किन्तु उसको प्रत्यक्ष के अन्तर्गत मानते हैं । इन मतों का निराकरण करते हुए यह सिद्ध किया है कि अनुमान आदि अन्य प्रमाण के समान प्रत्यभिज्ञान भी एक पृथक् प्रतिभास बाला प्रमाण है जैसे अनुमान का प्रत्यक्ष में अंतर्भाव नहीं होता वैसे इसका भी नहीं हो सकता । तथा बौद्ध यदि इस ज्ञान को प्रमाणभूत नहीं मानेंगे तो उनका क्षणिकत्ववाद समाप्त होगा क्योंकि जो सत् होता है वह सर्व ही क्षणिक होता है ऐसा संकलात्मक ज्ञान हुए बिना साध्यसाधन रूप अनुमान का उदय ही नहीं हो सकता और अनुमान के बिना क्षणभंगवाद भी सिद्ध नहीं हो सकता । तर्क प्रमाण - चार्वाक को छोड़कर अन्य सभी प्रवादी अनुमान प्रमाण को स्वीकार करते हैं किन्तु साध्यसाधन के श्रविनाभाव को विषय करने वाले तर्क प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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