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________________ - [१२] के अभाव में अनुमान प्रमाण का प्रादुर्भाव असंभव है, बात तो यह है कि स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क एवं अनुमान इन प्रमाणों में पूर्व पूर्व प्रमाणों की आवश्यकता रहती है अर्थात् प्रत्यक्ष से अनुभूत विषय में ही स्मृति होती है, स्मृति और प्रत्यक्ष का संकलन स्वरूप प्रत्यभिज्ञान होता है, तथा तर्क साध्य साधन के सम्बन्ध का स्मरण एवं संकलन हुए बिना प्रवृत्त नहीं हो सकता। ऐसे ही अनुमान को पूर्व प्रमाणों की अपेक्षा हुआ करती है अतः निश्चय होता है कि अनुमान के साध्य साधन रूप अवयवों के सम्बन्ध को ग्रहण करने वाला तर्क एक पृथक्भूत प्रमाण है। अनुमान प्रमाण का लक्षण ( साधनात् साध्य विज्ञानमनुमानम् ) और हेतु का लक्षण ( साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतु: ) करते ही बौद्ध अपने हेतु का लक्षण उपस्थित करते हैं कि पक्षधर्म सपक्षसत्व और विपक्ष न्यावृत्ति इस तरह त्रैरूप्य ( तीन रूप ) ही हेतु का लक्षण होना चाहिये अन्यथा उक्त हेतु सदोष होता है । इस त्रैरूप्यवाद का निरसन तो कृतिकोदयादि पूर्वचर हेतु से ही हो जाता है, अर्थात् “उदेष्यति मुहूर्तान्ते शकट कृतिकोदयात्" इत्यादि अनुमानगत हेतु में पक्ष धर्मादि रूप नहीं होते हुए भी ये अपने साध्य के साधक होते हैं अतः हेतु का लक्षण त्रैरूप्य नहीं है। पांचरूप्य खण्डन-नैयायिक हेतु का लक्षण पांच रूप करते हैं- पक्ष धर्म, सपक्षसत्व, विपक्षव्यावृत्ति, असत्प्रतिपक्षत्व और अबाधित विषयत्व, यह मान्यता भी बौद्ध मान्यता के समान गलत है क्योंकि इसमें भी वही दोष आते हैं, अर्थात् सभी हेतुओं में पांचरूप्यता का होना जरूरी नहीं है। पांचरूपता के नहीं होते हुए भी कृतिकोदयादि हेतु स्वसाध्य के साधक देखे जाते हैं। __अनुमान त्रैविध्यनिरास-पूर्ववत्, शेषवत् और सामान्यतोदृष्ट ऐसे अनुमान के तीन भेद नैयायिक के यहां माने जाते हैं, इनके केवलान्वयी, केवलव्यतिरेकी आदि विभाग किये हैं किन्तु यह सिद्ध नहीं होता, सभी अनुमानों में अविनाभावी हेतु द्वारा स्वसाध्य को सिद्ध किया जाता है अतः उनमें पूर्ववत् प्रादि का नाम भेद करना व्यर्थ है। अविनाभावादिका लक्षण एवं हेतुओं के सोदाहरण बावीस भेद - अविनाभाव का लक्षण, साध्य का स्वरूप, पक्ष का लक्षण, अनुमान के अंग, उदाहरण, उपनय एवं निगमनों का लक्षण, विधिसाधक एवं प्रतिषेधक साधक हेतुओं के भेद, बौद्ध कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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