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________________ ईश्वरवादः वयवानां प्रत्यक्षतोऽसिद्धौ क्षित्यादेस्तज्जन्यमानत्वस्याप्यसिद्ध ेः । प्रत्यक्षानुपलम्भसाधनश्च कार्यकारणभावः । द्व्यणुकादिकं स्वपरिमाणादल्पपरिमाणोपेतकारणारब्धं कार्य त्वात्पटादिवदित्यनुमानात्तेषां प्रसिद्धिः; इत्यप्यसमीचीनम्; चक्रकप्रसङ्गात् — परमाणुप्रसिद्धौ हि क्षित्यादेस्तैर्जन्यमानत्वलक्षणसावयवत्व सिद्धि:, तत्सिद्धौ च कार्यत्वसिद्धिः, ततश्च परमाणुप्रसिद्धिरिति । महापरिमाणोपेतप्रशिथिलावयवकर्पासपिण्डोपादानेन प्रतिनिबिडावयवाल्पपरिमाणोपेतकर्पासपिण्डेन अनेकान्तश्च । बलवत्पुरुषप्रयत्न प्रेरितहस्ताद्यभिघातादवयवक्रियोत्पत्तेः श्रवयवविभागात् संयोगविनाशात् महाकर्पासपिण्डविनाश:, अल्पकर्पासपिण्डोत्पादस्तु स्वारम्भकावयव कर्म संयोग विशेषवशादेव भवति इत्यपि विनाशोत्पादप्रक्रियोद्घोषणमात्रम्, प्रमाणतोऽप्रतीतेः । कर्पासद्रव्यं हि महापरिमाणपिण्डाकारपरित्यागे १०६ होने पर कार्यत्व हेतु सिद्ध होगा फिर परमाणु की प्रसिद्धि होगी । आपने कहा कि जो कार्य होता है वह अपने से अल्प परिमाण वाले कारण से होता है, सो यह कथन महान परिणामरूप शिथिल अवयव वाले कार्पास पिण्डसे अति निबिड ( घनिष्ट ) सम्बन्ध रूप प्रवयवों का अल्प परिमाण वाला कार्पास पिण्ड बनता हुआ दिखाई देने सेनैकान्तिक होता है, क्योंकि यहां महान परिणाम रूप कार्पास से अल्प परिमाण वाला कार्पास पिण्ड उत्पन्न हुआ है । योग - बलवान पुरुष के प्रयत्न से प्रेरित हाथ आदि के प्राघात से अवयवों में क्रिया उत्पन्न होती है, उससे अवयवों का विभाग होता है उस विभाग से संयोग का नाश होता है और उससे महाकार्पास पिण्ड नष्ट होता है, अल्प कार्पास पिण्ड का उत्पाद तो भिन्न कारण से ही होता है, उसमें पहले तो उस पिण्ड के आरम्भक जो श्रवयव हैं उनमें क्रिया होती है, उस क्रिया से संयोग विशेष होता है और उससे अल्प परिमाण वाला कार्पास पिण्ड तैयार हो जाता है ? Jain Education International जैन - यह विनाश और उत्पाद की प्रक्रिया का वर्णन असत् है, क्योंकि प्रमाण से ऐसी प्रतीति नहीं होती है प्रमाण से तो एक ही कार्पास द्रव्य महापरिमाण पिण्डाकार को छोड़कर अल्प परिमाण पिण्डाकार रूप से उत्पन्न होता हुआ प्रतीति में आता है । प्रतिशीघ्र पूर्व संयोग का नाश होकर नवीन पिण्ड तैयार होता है अतः भेद मालूम नहीं देता है ऐसा समाधान देना भी असंगत है इस तरह तो सभी पदार्थ क्षणिक सिद्ध हो जावेंगे क्षणिकवादी कह सकते हैं कि सभी पदार्थ क्षणिक हैं उनमें अभेद का ग्रध्यवसाय सदृश अपर अपर पदार्थ के उत्पन्न होने से होता है, इस प्रकार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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