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________________ १०८ प्रमेयकमलमार्तण्डे उद्द्योतकरेण च; "भुवनहेतवः प्रधानपरमाण्वदृष्टाः स्वकार्योत्पत्ताव तिशयवबुद्धिमन्तमधिष्ठितारमपेक्षन्ते स्थित्वा प्रवृत्तेस्तन्तुतुर्यादिवत् । तथा, बुद्धिमत्कारणाधिष्ठितं महाभूतादि व्यक्त सुखदुःखनिमित्त भवत्यचेतनत्वात्कार्यत्वाद्विनाशित्वाद्रू पादिमत्वाद्वा वास्यादिवत् ।" [न्यायवा० पृ० ४५७ ] इत्यनवयं भगवतः प्रलयकालेऽप्यलुप्तज्ञानाद्य तिशयस्य साधनम् । अत्र प्रतिविधीयते-सावयवत्वात्कार्यत्वं क्षित्यादेः प्रसाध्यते । तत्र किमिदं सावयवत्वं नाम ? सहावयवैवर्तमानत्वम्, तैर्जन्यमानत्वं वा, सावयव मिति बुद्धि विषयत्वं वा ? प्रथमपक्षे सामान्यादिनानेकान्तः; गोत्वादि सामान्यं हि सहावयवैर्वर्त्तते, न च कार्यम् । द्वितीयपक्षेप्यसिद्धो हेतुः; परमाण्वाद्य हैं क्योंकि ये स्थित होकर कार्य में प्रवृत्ति करते हैं, जैसे तन्तु (धागे) वाद्य आदिक पदार्थ स्थित होकर कार्य करते हैं अतः बुद्धिमान अधिष्ठाता जुलाहा आदि की अपेक्षा रखते हैं । दूसरा अनुमान महाभूत पृथ्वी आदि बुद्धिमान कारण से अधिष्ठित होकर सुख दुःख का निमित्त हुआ करते हैं, क्योंकि वे सब अचेतन हैं, कार्यरूप हैं, नाशशील हैं, तथा रूपादिमान हैं, जैसे वसूला आदि शस्त्र चेतन से अधिष्ठित होकर कार्य करते हैं । इस प्रकार यहां तक अनादि ईश्वर को सिद्ध करने वाले अनेकों प्रमाण बताये गये हैं उनसे भगवान ईश्वर की निर्दोष रूप से सिद्धि होती है तथा उनमें प्रलय काल में भी ज्ञान का अतिशय सर्वज्ञपना बना रहता है, ऐसा सिद्ध होता है। जैन- ईश्वरवादी यौग का यह कथन असत्य है, पृथ्वी आदि में अवयवपना होने से कार्यत्व को सिद्ध करते हैं, सो प्रश्न होता है कि सावयवपना किसे कहते हैं ? अवयवों के साथ रहना, अवयवों से उत्पन्न होना “यह सावयव है" ऐसा बुद्धि का विषय होना ? प्रथम पक्ष में सामान्य आदि के साथ अनेकांत दोष आता है क्योंकि गोत्व आदि सामान्य अवयवों के साथ तो रहता है किन्तु कार्य नहीं है । दूसरे पक्ष में कार्यत्व हेतु असिद्ध दोष संयुक्त होता है क्योंकि परमाणु आदि अवयव प्रत्यक्ष से प्रसिद्ध हैं अतः उनसे पृथ्वी आदि का उत्पन्न होना भी असिद्ध रहेगा किसी भी पदार्थ का कार्य कारण भाव प्रत्यक्ष और अनुपलंभ प्रमाण द्वारा जाना जाता है अन्यथा नहीं। शंका-द्वयणुक आदि पदार्थ अपने से अल्प परिमाण वाले परमाणुरूप कारण से किये हुए हैं, क्योंकि वे कार्य हैं, जैसे पटादिक कार्य हैं इस अनुमान से परमाणु आदि की सिद्धि हो जाती है ? समाधान- इस तरह मानने से चक्रक दोष आता है परमाणु के प्रसिद्ध होने पर उनसे पृथ्वी आदि का उत्पन्न होना रूप सावयवत्व सिद्ध होगा और उनके सिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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