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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
एवाशेषज्ञत्वात् । न हि सकल देशकालाश्रितपुरुषपरिषत्साक्षात्करणमन्तरेण प्रत्यक्षतस्तदाधारमसर्वज्ञत्वं प्रत्येतु ं शक्यम् । द्वितीयपक्षे तु न सर्वथा सर्वज्ञाभावसिद्धिः ।
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अथ न प्रवर्त्तमानं प्रत्यक्षं सर्वज्ञाभावसाधकं किन्तु निवर्तमानम् । ननु काररणस्य व्यापकस्य वा निवृत्तौ कार्यस्य व्याप्यस्य वा निवृत्तिः प्रसिद्धा नान्यनिवृत्तावन्यनिवृत्तिरतिप्रसङ्गात् । न चाशेषस्य प्रत्यक्षं कारणं व्यापकं वा येन तन्निवृत्तौ सर्वज्ञस्यापि निवृत्तिः । न चैवं घटाद्यभावासिद्धिः एकज्ञानसं
नहीं होते हैं, इस तरह सर्वज्ञ का प्रभाव करता है, अथवा किसी जगह 'कदाचित् ' कोई सर्वज्ञ नहीं होता" इस तरह का प्रभाव सिद्ध करता है ? प्रथम पक्ष कहो तो सर्वज्ञ का अभाव हो नहीं सकता, क्योंकि जिसने "सब जगह सब काल में सभी सर्वज्ञ नहीं होते" इतनी बात जान ली वही सर्वज्ञ हुआ । तथा संपूर्ण देश काल में होने वाले सभी पुरुषों को जाने बिना प्रत्यक्ष रूप से उन पुरुषों में होने वाली सर्वज्ञता जानना शक्य नहीं है । दूसरा पक्ष कहो तो सर्वथा एकांत से सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध नहीं हुआ किन्तु क्वचित् कदाचित् ही हुआ ।
मीमांसकः - सर्वज्ञ के अभाव को सिद्ध करने वाला जो प्रत्यक्ष है वह प्रवर्त्तमान नहीं निवर्त्तमान है ?
जैन: - निवर्त्तमान प्रत्यक्ष किसके निवर्त्तमान होने पर निवृत्त होता है यह बताना होगा । कारण ( अग्नि आदि) के निवृत्त होने पर या व्यापक ( वृक्षत्वादि) के निवृत्त होने पर कार्य या व्याप्य (धूम या शिशपा) निवृत्त होता है, यह तो प्रसिद्ध बात है, कोई अन्य के निवृत्त होने से अन्य निवृत्त नहीं होता, यदि मानेंगे तो अति प्रसंग होगा, चाहे जिसके निवृत्त होने पर चाहे जो निवृत्त हो जायगा । अतः निवर्त्तमान की बात तो अग्नि-धम वृक्षत्व - शिशपात्व के समान, व्याप्य व्यापक, कार्यकारण संबंध होने पर ही संभव है, किन्तु सर्वज्ञ का निवर्त्तमान प्रत्यक्ष कोई कारण या व्यापक तो है नहीं जिससे कि प्रत्यक्ष के निवृर्तमान होते ही सर्वज्ञ की भी निवृत्ति हो ? कोई कहे कि इस तरह सर्वज्ञ के प्रभाव की सिद्धि नहीं मानेंगे तो घट आदि के प्रभाव की सिद्धि भी नहीं हो सकती, क्योंकि उसमें भी प्रश्न उपस्थित होंगे कि घट के अभाव का साधक प्रवर्त्तमान प्रत्यक्ष है कि निवर्त्तमान प्रत्यक्ष ? इत्यादि, सो बात नहीं, घट का प्रभाव तो सिद्ध हो जायगा, क्योंकि एक ज्ञान संसर्गि अर्थात् एक ही व्यक्ति के ज्ञान से जाने हुए अन्य पदार्थ की यहां उपलब्धि होती है, मतलब घट और उसका आश्रय भूतल दोनों को एक ज्ञानसे
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