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________________ सर्वज्ञत्ववादः षयिणोप्यपरिज्ञानाभ्युपगमे कथं जैमिन्यादेः सकलवेदार्थपरिज्ञान निश्चयोऽसकलवेदार्थविदाम् ? तदनिश्र्चये च कथं तद्वयाख्यातार्थाश्रयणादग्निहोत्रादावनुष्ठाने प्रवृत्तिः ? कथं वा व्याकरणादिसकलशास्त्रार्थापरिज्ञाने तदर्थज्ञतानिश्वयो व्यवहारिणाम् ? यतो व्यवहारप्रवृत्तिः स्यात् । सुनिश्चितासम्भवद्बाधकप्रमाणत्वाच्चशेषार्थवेदिनो भगवतः सत्त्वसिद्धिः । न चेदमसिद्धम्; तथाहि - सर्वविदोऽभावः प्रत्यक्षेणाधिगम्यः, प्रमाणान्तरेण वा ? न तावत्प्रत्यक्षेण; तद्धि सर्वत्र सर्वदा सर्वः सर्वज्ञो न भवतीत्येवं प्रवर्त्तते, क्वचित्कदाचित्कश्चिद्वा ? प्रथमपक्षे न सर्वज्ञाभावस्तज्ज्ञानवत ८७ जानने वाले व्यक्ति का भी ज्ञान नहीं हो सकता है ? यदि नहीं तो आपके "जैमिनी महर्षि आदि को संपूर्ण वेदार्थ का ज्ञान था " ऐसा निश्चय वेद ज्ञान से रहित पुरुषों को कैसे हो सकेगा ? तथा यदि जैमिनी आदि के ज्ञान का निश्चय नहीं है तो उनसे व्याख्यान सुनना, वेद कथित अनुष्ठान अग्निहोत्र यादि का करना इत्यादि कार्यों में कैसे प्रवृत्त हो सकेंगे ? लोक में व्याकरण आदि सकल शास्त्रों का परिज्ञान किसी को नहीं होता तो भी वह व्यक्ति उन व्याकरण आदि शास्त्रों को जानने वाले विद्वान का निश्चय कैसे करता है ? उनके पास पढ़ना आदि व्यवहार किस प्रकार होता ? यह सब होता है, इसी से मालूम होता है कि संपूर्ण पदार्थों को नहीं जानने पर भी उन पदार्थों को जो जानता है उस पुरुष को हम जान सकते हैं । भावार्थ:- यहां विशेषरूप से यह समझाया है कि किसी व्यक्ति के ज्ञान के विषय में जानना हो तो उस ज्ञान के विषयों को भी जानना जरूरी हो सो बात नहीं है, देखा जाता है कि किसी को ज्योतिषी शास्त्र पढ़ना है तो वह व्यक्ति ज्योतिषी के पास चला जाता है, किंतु उसको उस ज्योतिषी संबंधी विषयों का - नक्षत्र ग्रहण, तारा आदि का ज्ञान तो है नहीं, यदि होता तो पढ़ने को जाता ही नहीं, ऐसे ही सर्वज्ञ को जानने के लिये सर्वज्ञ के ज्ञान के सारे विषयों को जानना जरूरी नहीं है यह निर्विवाद सिद्ध होता है । अब सर्वज्ञ की सिद्धि निर्दोष अनुमान प्रमाण से करते हैं। सकल पदार्थों को जानने वाले भगवान सर्वज्ञ हैं ( साध्य ) क्योंकि सुनिश्चितरूप से उसमें कोई बाधा देने वाला प्रमाण नहीं है । यह अनुमान प्रसिद्ध नहीं है, इसी बात को कहते हैं-मीमांसक सर्वज्ञ का प्रभाव करते हैं वह प्रभाव क्या प्रत्यक्ष से जाना जाता है, या अन्य प्रमाण से ? प्रत्यक्ष से जाना जाता है ऐसा तो कह नहीं सकते, प्रत्यक्ष के विषय में प्रश्न है कि प्रत्यक्ष प्रमाण सर्वज्ञ का प्रभाव सिद्ध करता है सो "सब जगह हमेशा सभी पुरुष सर्वज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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