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प्रमेयकमलमार्तण्डे स्थितोर्थस्तथैव तत्प्रतिपद्यते । तृतीयविकल्पोप्ययुक्तः; क्वचिद्विषये तस्योत्पन्नस्यात्मस्वभावतया विनाशासम्भवात् । न हि स्वभावो भावस्य विनश्यति स्फटिकस्य स्वच्छता दिवत्, अन्यथा तस्याप्यभावः स्यात् । औपाधिकमेव हि रूपं नश्यति यथा तस्यैव रक्तिमादि । कथं चैवंवादिनो वेदस्यानाद्यनन्तताप्रतिपत्तिस्तत्राप्युक्तविकल्पानामवतारात् ? कथं वा साध्यसाधनयोः साकल्येन व्याप्तिप्रतिपत्तिः, सामान्येन व्याप्तिप्रतिपत्तावप्यनाद्यनन्तसामान्यप्रतिपत्तावुक्तदोषानुषङ्ग एव ।
यच्चोक्तम्-'कथं चासौ तत्कालेप्यऽसर्वज्ञैतुि शक्यते ? तदपि फल्गुप्रायम्; विषयापरिज्ञाने वि
पदार्थ का जो स्वभाव होता है वह नष्ट नहीं होता जैसे स्फटिक का स्वभाव स्वच्छता है यह नष्ट नहीं होता है । यदि स्वभाव का नाश होगा तो पदार्थ का नाश हो जायगा । हां जो उपाधि से अाया हुअा स्वरूप है वह नष्ट होता है; जैसे उसी स्फटिक में जपा कुसुम रूप उपाधि से आयी हुई लालिमा नष्ट होती है । सर्वज्ञ के ज्ञान में इस प्रकार के प्रश्न करने वाले आप मीमांसक के वेद में अनादि अनंतता की प्रतिपत्ति की सिद्धि किस प्रकार सिद्ध होगी ? क्योंकि वहां पर भी यही प्रश्न होंगे ?
___ भावार्थ:-सर्वज्ञ का ज्ञान पहले या पीछे कदाचित् विश्रांत हो जायगा तो संसार की अनादि अनंतता कैसे सिद्ध होगी ? इत्यादि प्रश्न सर्वज्ञ के ज्ञान के विषय में किये थे, ठीक यही प्रश्न वेद के विषय में हो सकते हैं वेद से उत्पन्न हुना ज्ञान यदि पहले या पीछे कदाचित् विश्रांत हुया तो संसार की अनादि अनंतता कैसे सिद्ध होगी ? वेद ज्ञान विश्रांत नहीं होता ऐसा माने तो भी अनेक युग सहस्र काल में भी सकल संसार का जानना नहीं होगा, क्योंकि वेद ज्ञान क्रमिक है ? इस प्रकार इन प्रश्नावलिसे मीमांसक का छुटकारा नहीं हो सकता ।
सर्वज्ञ ज्ञान के विषय में विश्रांतत्व का विचार करते हैं सो व्याप्ति ज्ञान में भी वही विचार आयेगा, उसमें भी साध्य साधन की पूर्ण रूप से प्रतीति होती है, सामान्य से व्याप्ति को जानने पर भी अनादि अनंत के सामान्य का ज्ञान होने में वहीं विश्रांति का प्रश्न अाता है, क्योंकि सर्वदेश और सर्वकाल संबंधी साध्यसाधन के अविनाभाव का ज्ञान कराना व्याप्ति ज्ञान का कार्य है सो यदि वह पहले या पीछे कदाचित विश्रांत हो जाय तो कैसे होगा ? इत्यादि प्रश्नों का जवाब कैसे देंगे ?
सर्वज्ञ कालोन असर्वज्ञ पुरुष सर्वज्ञ को कैसे जान सकेंगे ऐसा मीमांसक ने पूछा था, वह ठीक नहीं है, जिसको किसी विषय का ज्ञान नहीं है तो क्या उस विषय को
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