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________________ * * अभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भावः । * यच निषेध्याधारवस्तुग्रहणादिसामग्रीत इत्याद्युक्तम् ; तत्र निषेध्याधारो वस्त्वन्तरं प्रयोगिसंसृष्ट प्रतीयते, असंसृष्ट वा? तत्राद्यपक्षोऽयुक्तः, प्रतियोगिसंसृष्ट वस्त्वन्तरस्याध्यक्षेण प्रतीतौ तत्र तदभावग्राहकत्वेनाभावप्रमाणप्रवृत्तिविरोधात् । प्रवृत्तौ वा न प्रामाण्यम् । प्रतियोगिनः सत्त्वेपि तत्प्रवृत्त: । द्वितीयपक्षे तु अभावप्रमाणर्वेयर्थ्यम्, प्रत्यक्षेणैव प्रतियोगिनोऽभावप्रतिपत्त । अथ प्रतियोग्यसंसृष्टतावगमो वस्त्वन्तरस्याभावप्रमाणसम्पाद्यः; तर्हि तदप्यभावप्रमाणं प्रतियोग्यसंसृष्ट वस्त्व अभाव प्रमाण का वर्णन करते हुए मीमांसक ने कहा था कि निषेध्य के आधारभूत वस्तु के ग्रहण करने आदि रूप सामग्री से तीन प्रकार का प्रभाव प्रमाण उत्पन्न होता है वह अभाव प्रमाण घट पट आदि पदार्थों के अभाव को सिद्ध करता है, इत्यादि सो वह कथन अयुक्त है, कैसे ? सो अब इसी विषय पर विचार किया जाता है-निषेध्य [ निषेध करने योग्य ] वस्तु का आधारभूत जो भूतल रूप वस्तु है वह प्रतियोगी से [ घट से ] संसर्गित प्रतीत होती है अथवा प्रसंसर्गित ? भूतल रूप वस्तु घट संसर्गित प्रतीत होती है तो ऐसा कहना अयुक्त है, क्योंकि यदि प्रतियोगी घट के संसर्ग से युक्त भूतल प्रत्यक्ष से प्रतीत होता है तो वहां उस घट के प्रभाव को ग्रहण करने वाले अभाव प्रमाण की प्रवृत्ति होने में विरोध पाता है। यदि प्रवृत्ति करेगा तो उस में प्रमाणता नहीं मानी जा सकती है, क्योंकि प्रतियोगी जो घट है उसके रहते हुए भी उस घट का निषेध करने में वह प्रवृत्त हुआ है । दूसरा पक्ष- "प्रतियोगी से असंसृष्ट भूतल प्रतीत होता है" ऐसा कहो तो अभाव प्रमाण व्यर्थ होगा ? क्योंकि प्रत्यक्ष से ही प्रतियोगी के (घट के) अभाव की प्रतीति हो रही है । शंका-भूतल का जो प्रतियोगी से असंसृष्टपन है उसका अवगम अभाव प्रमाण के द्वारा होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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