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प्रमेयकमलमार्तण्डे
प्रसङ्गसाधनोपन्यासात् ।
का जो घर में प्रभाव है वह बाहर में सद्भाव पूर्वक कहा गया है, यह साध्य है [व्याप्य है] क्योंकि जीते हुए भी घर में उसका अभाव है यह साधन है [व्यापक है ] जब बाहर में सद्भाव पूर्वक ही घर में उसका अभाव है, इतना व्याप्य मान लिया गया है ( अर्थापत्ति प्रमाणवादी मीमांसकने ) तो इसके साथ व्यापक-जीते हुए ही उसका घर में अभाव है ऐसा माना हुमा ही कहलायेगा, इस प्रकार मीमांसक की मान्य अर्थापत्ति में पृथक प्रमाणता का निरसन हो जाता है । क्योंकि पूर्वोक्त युक्तियों द्वारा उसका अनुमान में अन्तर्भाव होना सिद्ध होता है ।
अर्थापत्ति पुविवेचन समाप्त
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