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अर्थापत्तेः पुनर्विवेचनं
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अथ न निश्चितं सज्जीवनं तद्ग्रहाभावविशेषणं येनायं दोषः, किन्तु 'यदि गृहेऽसन् जीवति तदान्यत्रास्ति' इत्यभिधीयते; तहि सशयरूपत्वात्तस्याः कथं प्रामाण्यम् ? या तु प्रमाणं सानुमानमेव । पञ्चावयवत्वमप्यत्र सम्भवत्येव । तथाहि-जीवतो देवदत्तस्य गृहेऽभावो बहिस्तत्सद्भावपूर्वकः जीवतो गृहेऽभावत्वात् प्राङ्गणे स्थितस्य गृहे जीवदभाववत् । यद्वा, देवदत्तो बहिरस्ति गृहासंसृष्ट जीवनाधारत्वात्स्वात्मवत् । कथं पुनर्देवदत्तस्यानुपलभ्यमानस्य जीवनं सिद्ध येन तद्धतुविशेषणमित्यसत्;
करता जिससे कि यह अन्योन्याश्रय नामका दोष दिया जा सके । यहां तो इतना ही जाना जाता है कि घरमें न होकर यदि जीता है तो अन्यत्र है।
समाधान-इसतरह माने तो संशयास्पद ज्ञान सिद्ध होता है, ऐसे संशयभूत अर्थापत्तिमें प्रामाण्य सिद्ध होना किसप्रकार शक्य है ? यदि कोई अन्य अर्थापत्ति प्रमाणभूत हो भी तो वह अनुमान प्रमाण ही कहलायेगी ! इस अर्थापत्तिनामसे माने गये आपके ज्ञान पंच अवयवपना भी घटित होता है, देखिये-जीवंत देवदत्तका घरमें जो अभाव है, वह बहिःसद्भाव पूर्वक है, [ पक्ष ] क्योंकि जीवंत रहते हुए भी घर में अभाव है [हेतु] जैसे प्रांगण में स्थित देवदत्तका जीवंत रहते हुए भी गृहाभ्यन्तरमें उसका प्रभाव रहता है [ दृष्टांत ] दूसरा अनुमान प्रयोग भी उपयुक्त है कि-देवदत्त बाहर गया है [ पक्ष ] क्योंकि घरमें असंयुक्त जीवनाधारपना है [हेतु] जैसे स्वात्मस्वरूप होता है ( जैसे स्वात्मस्वरूप घरमें असंयुक्त जीवनाधार रूप होता है )।
शंका-जब कि घरमें देवदत्त उपलब्ध नहीं हो रहा है तो फिर वह जीवित है यह किस प्रमाण से सिद्ध होता है ? जिससे वह अभावरूप हेतुका विशेषरण हो सके ?
समाधान-यह प्रश्न ठीक नहीं है । क्योंकि हमने जो ऐसा कहा है वह प्रसंग साधन को आश्रित करके कहा है।
विशेषार्थ- “साध्य साधनयोाप्यव्यापकभाव सिद्धी व्याप्याभ्युपगमो व्यापकाभ्युपगमनान्तरीय को यत्र प्रदर्श्यते, तत्प्रसंगसाधनम्" प्रसंगसाधनका लक्षण-ऐसा है कि साध्य और साधन में व्याप्य व्यापक भाव सिद्ध होनेपर जब कहीं कोई पुरुष मात्र व्याप्य को स्वीकार कर लेता है तो उसे व्यापक को भी स्वीकार करना चाहिये ऐसा जहां आपादन किया जाता है वह प्रसंग साधन है । यहां अनुमान में जीवंत देवदत्त
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