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प्रमेयकमलमार्तण्डे
यत्पुनरुक्तमैकानेका वेत्यादि, तत्रार्थानामनेकैव शक्तिः । तथाहि-अनेकशक्तियुक्तानि कारणानि विचित्रकार्यत्वान्नार्थवत् । विचित्रकार्याणि वा कारणशक्तिभेदनिमित्तकानि तत्त्वाद्विभिनार्थकार्यवत् । न हि कारणशक्तिभेदमन्तरेण कार्यनानात्वं युक्तं रूपादिज्ञानवत्, यथैव हि ककं. टिकादौ रूपादिज्ञानानि रूपादिस्वभावभेदनिबन्धनानि तथा क्षणस्थितेरेकस्मादपि प्रदीपादेर्भावाद् वत्तिकादाहतैलशोषादिविचित्रकार्याणि तच्छक्तिभेदनिमित्तकानि व्यवतिष्ठन्ते, अन्यथा रूपादे नात्वं न स्यात् । चक्षुरादिसामग्री भेदादेव हि तज्ज्ञानप्रतिभासभेद: स्यात्, कर्कटिकादिद्रव्यं तु रूपादिस्वभावरहितमेकमनंशमेव स्यात् । चक्षुरादिबुद्धौ प्रतिभासमानत्वाद पादेः कथं कर्कटिकादिद्रव्यस्य
शक्ति भेद बिना होते तो उनमें रूप आदि का नानापना नहीं होता, फिर तो चक्षु आदि सामग्री के भेद मात्र से ही रूपादि ज्ञानों में भेद प्रतिभास होता है, प्रतिभासके आलंबनभूत ककड़ी आदि पदार्थ तो रूप आदि स्वभाव से दहित एक अनंश मात्र ही हैं ऐसा मानना होगा। कहने का अभिप्राय यह हुआ कि यदि कारणों में भेद हुए बिना कार्यों में भेद होना माना जाय तो ककड़ी आम अमरूद प्रादि पदार्थों में रूप रस, गन्ध वर्णादिका भेद तो है नहीं, सिर्फ चक्षु, रसना आदि इन्द्रियों के भिन्न भिन्न होनेसे रूप रसादि न्यारे न्यारे ज्ञान होते हैं, ऐसा गलत सिद्धान्त मानना पड़ेगा।
शंका-चक्षु आदि से उत्पन्न होनेवाले ज्ञानों में रूप आदि का तो प्रतिभास होता है, फिर ककड़ी आदि द्रव्यको उनसे रहित कैसे माना जाय ?
समाधान - तो फिर तैल शोष प्रादि अनेक कार्य अनुमान ज्ञानमें प्रतिभासित होते हैं, अतः पदार्थों में नाना शक्तियां हैं भी यह प्रतीति में आता है, फिर पदार्थ नाना शक्तियों से रहित है ऐसा कैसे माना जा सकता है। अर्थात् नहीं माना जा सकता।
___ शंका-चक्षु आदि इन्द्रियजन्य ज्ञानों में साक्षात् प्रतिभासित होनेवाले रूप रस आदि स्वभाव ही परमार्थ सतु हैं [वास्तविक हैं ] अनुमान ज्ञानमें प्रतीत होनेवाली शक्तियां वास्तविक नहीं हैं ?
समाधान-यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा कहने से तो अदृष्ट ईश्वर आदि में प्रवास्तविकता का प्रसंग होगा ? क्योंकि ईश्वरादि भी साक्षात् प्रत्यक्ष ज्ञान में प्रतीत नहीं होते, सिर्फ अनुमान से ही जाने जाते हैं।
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