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५.१२
प्रमेयक मलमार्त्तण्डे
परोक्षस्य स्मृत्यादिभेदेन परिगणितत्वात् उपमानादीनां प्रमाणान्तरत्वमेवेत्यप्यसमीक्षिताभिधानम् ; तेषामत्रैवान्तर्भावात् । उपमानस्य हि प्रत्यभिज्ञानेन्तर्भावो वक्ष्यते ।
अर्थापत्त ेस्त्वनुमानेऽन्तर्भावः; तथा हि- श्रर्थापत्त्युत्थापकोऽर्थोन्यथानुपपद्यमानत्वेनानवगतः, अवगतो वाऽदृष्टार्थपरिकल्पनानिमित्तं स्यात् ? न तावदनवगतः; प्रतिप्रसङ्गात् । येन हि विनोपपद्यमानत्वेनावगतस्तमपि परिकल्पयेत्, येन विना नोपपद्यते तमपि वा न कल्पयेत्, अन्यथानुपपद्यमानत्वेनानवगतस्यार्थापत्त्युत्थापकार्थस्यान्यथानुपपद्यमानत्वे सत्यप्यदृष्टार्थपरिकल्पकत्वासम्भवात् । सम्भवे वालिङ्गस्याप्यनिश्र्चिताविनाभावस्य परोक्षार्थानुमापकत्वं स्यात् । ततश्च ेदं नार्थापत्त्युत्थापकार्थाद्
आगे कहनेवाले हैं । प्रर्थापत्ति का अनुमानप्रमाण में अन्तर्भाव हो जाता है सो ब इसी बात को हम सिद्ध करते हैं
अर्थापत्तिको उत्पन्न करनेवाला जो पदार्थ है जैसे कि नदीपूर प्रादि- वह अन्यथा अनुपद्यमानपने से अवगत होकर या अनवगत होकर अदृष्ट अर्थकी ( ऊपर में वर्षाकी ) कल्पना का निमित्त होता है ? यदि अर्थापत्ति का उत्थापक पदार्थ अनवगत होकर ही अदृष्टार्थ की कल्पना का निमित्त होता है तो अतिप्रसङ्ग नामका दोष होगादेखो यदि श्रर्थापत्ति को उत्पन्न करनेवाला पदार्थ जो नदीपूर आदि है वह अन्यथानुपपत्तिरूपसे - बिना वृष्टिके नदीपूर नहीं श्रासकता है इसरूप से निश्चित नहीं हुआ है फिर भी अदृष्टार्थ की ( बरसात की ) कल्पना कराता है तो जिसके बिना वह उपपद्यमान से अवगत है उसकी भी कल्पना करा देगा, और जिसके विना वह उपपद्यमान नहीं है उसकी भी कल्पना नहीं करायेगा | क्योंकि अन्यथानुपपद्यमानपने से नवगत ऐसा प्रर्थापत्तिका उत्थापक जो वह जलपूरादिरूप पदार्थ है वह यद्यपि अन्यथानुपपद्यमान है [ बिना वृष्टि के नहीं होता है ] फिर भी उस श्रदृष्टार्थकी कल्पना असंभव ही रहेगी ।
प्रर्थापत्ति का उत्थापक पदार्थ अन्यथानुपपद्यमानत्वेन अनवगत होकर यदि दृष्टार्थ की कल्पना का निमित्त बन जाता है तो एक और दूषण यह भी श्रावेगा कि हेतु भी अपने साध्य के साथ अविनाभावरूप से अनिश्चित होकर परोक्षार्थ- श्रग्नि आदि साध्यका अनुमापक हो जावेगा, इस तरह धूमादि हेतु की प्रर्थापत्ति उत्थापक पदार्थ से कोई भिन्नता नहीं रहेगी ।
दूसरा पक्ष - प्रर्थापत्ति का उत्थापक पदार्थ अन्यथानुपपद्यमानपने से अवगत
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