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________________ अर्थापत्तिविचारः तथार्थापत्तिरपि प्रमाणान्तरम् । तल्लक्षणं-हि-"अर्थापत्तिरपि दृष्टः श्रुतो वार्थोन्यथा नोपपद्यते इत्यदृष्टार्थकल्पना" । [ शाबरभा० ११५] कुमारिलोप्येतदेव भाष्यकारवचो.व्याचष्ट । "प्रमाणषट्कविज्ञातो यत्रार्थोऽनन्यथा भवन् । . . . - अदृष्ट कल्पयेदन्यं सार्थापत्तिरुदाहृता ॥" ..." . [मो० श्लो० अर्थी परि० श्लो० १ ] प्रब यहां पर अर्थापत्तिप्रमाण भी स्वतंत्र प्रमाण है ऐसा मीमांसकादिके मतानुसार विचार किया जाता है । जैसे आगम और उपमाप्रमाण स्वतंत्र सिद्ध हुए हैं, वैसे ही अर्थापत्ति भी एक स्वतंत्र प्रमाण है, उसका भी अन्तर्भाव अनुमान में नहीं होता है। उसका लक्षण इस प्रकार से है- दृष्ट-प्रत्यक्षप्रमाण से जाना गया अथवा श्रुत आगमप्रमाण से जाना गया पदार्थ जिसके विना संभव नहीं हो सके ऐसे उस अदृष्ट अर्थ की कल्पना जिसके द्वारा की जाती है उसका नाम अर्थापत्ति है । कुमारिल नामक मीमांसक के ग्रन्थकार ने भी भाष्यकार के इस वचनको “प्रमाणषट्क" इत्यादि श्लोक द्वारा इस प्रकार से पुष्ट किया है कि छह प्रमाणोंके द्वारा जाना गया अर्थ जिसके बिना नहीं होता हुआ जिस अदृष्ट अर्थ की कल्पना कराता है ऐसी उस अदृष्ट अर्थ की कल्पना का नाम अर्थापत्ति प्रमाण है । जैसे किसी व्यक्ति ने नदी का पूर देखा, वृष्टि होती हुई नहीं देखी, अब वह व्यक्ति नदी पूर को देखकर ऐसा विचार करता है कि ऊपर में बरसात हुए बिना नदी में बाढ़ आ नहीं सकती, अत: ऊपर में वृष्टि हुई है । इस प्रकार से अदृष्ट पदार्थ का निश्चय जिस ज्ञानके द्वारा होता है वह अर्थापत्ति नामका प्रमाण कहलाता है ॥ १ ॥ मतलब कहने का यह है कि प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति और अभाव इन छह प्रमाणोंके द्वारा जाना हुआ पदार्थ जिसके बिना नहीं बनता-सिद्ध नहीं होता उस पदार्थ की सिद्धि करना अर्थापत्ति का विषय है। इस अर्थापत्ति प्रमाण के अनेक भेद हैं-उनमें प्रत्यक्षपूर्वक होनेवाली प्रर्थापत्ति इसप्रकार से है-जैसे किसी ने स्पार्शन प्रत्यक्ष से अग्निके दाह को जाना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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