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________________ प्रमेयकमलमार्तण्डे अस्य चानधिगतार्थाधिगन्तृतया प्रामाण्यम् । गवयविषयेण हि प्रत्यक्षेण गवयो विषयी कृतो, न त्वसन्निहितोपि सादृश्यविशिष्टो गौस्तद्विशिष्ट वा सादृश्यम् । यच् पूर्व 'गौः' इति प्रत्यक्षमभूत्तस्यापि गवयोत्यन्तमप्रत्यक्ष एव । इति कथं गवि तदपेक्षं तत्सादृश्यज्ञानम् ? उक्त च "तस्माद्यत्स्मर्यते तत्स्यात्सादृश्येन विशेषितम् । प्रमेयमुपमानस्य सादृश्यं वा तदन्वितम् ।। १॥ प्रत्यक्षेणावबुद्धपि सादृश्ये गवि च स्मृते । विशिष्ट स्यान्यतोऽसिद्ध रुपमानप्रमाणता ।। १ ।। की समानता रहती है, ऐसी वह समानता ही इस उपमान प्रमाण का विषय है ॥ १ ॥ यह उपमान प्रमाण पूर्व में नहीं जाने गये समानतारूप अर्थको जाननेवाला है, अतः प्रमाणभूत है। इस उपमान प्रमाणका विषय किस प्रकार अपूर्व है सो समझाया जाता है-रोझ को विषय करनेवाला जो प्रत्यक्ष है उसने केवल रोझ को ही जाना है, दरवर्ती सादृश्ययुक्त गायको नहीं, अथवा गाय में जो सादृश्य है उस सादृश्यको उस प्रत्यक्ष ने विषय नहीं किया है तथा उसने अपने नगर में जो गाय देखी हुई थी उस समय उसे रोझ भी अत्यन्त परोक्ष था, अत: गाय में या रोझ में रोझ की या गायकी अपेक्षा लेकर रोझ के समान गाय है या गाय के समान रोझ है ऐसा सादृश्यज्ञान प्रत्यक्षद्वारा कैसे हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता, कहा भी है कि- रोझ के देखने पर जो गाय का स्मरण होता है वह सादृश्य से विशेषित होकर ही उपमान प्रमाण का विषय होता है, अथवा गो का या रोझका जो सादृश्य है वह इस प्रमाण का विषय होता है ॥ १॥ प्रत्यक्ष से रोझ को जान लेने पर भी और गाय के स्मरण हो जाने पर भी गवय के समान गाय होती है ऐसा जो विशिष्ट सादृश्य ज्ञान होता है वह प्रत्यक्षादि प्रमाण का विषय नहीं है, किन्तु यह उपमान प्रमाण का ही विषय है, इस तरह यह उपमान ज्ञान अपूर्वार्थ का ग्राहक होने से प्रमाणभूत है ॥ २ ॥ जिस प्रकार पर्वतादिस्थानके विषयभूत हो जाने पर (प्रत्यक्ष से जाने जाने पर) तथा अग्नि के स्मरण होने पर भी अनुमान विशिष्ट विषयवाला होने के कारण अप्रमाण नहीं माना जाता है उसी प्रकार यहां पर भी मानना चाहिये, मतलब-अनु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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