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उपमानविचारः
उपमानं च । अस्य हि लक्षणम्
"दृश्यमानाद्यदन्यत्र विज्ञानमुपजायते ।
सादृश्योपाधितस्तज्जैरुपमानमिति स्मृतम् ॥ १॥" [ ] येन हि प्रतिपत्ता गौरुपलब्धो न गवयो, न चातिदेशवाक्यं 'गौरिव गवयः' इति श्रुतं तस्यारण्ये पर्यटतो गवयदर्शने प्रथमे उपजाते परोक्षे गवि सादृश्यज्ञानं यदुत्पद्यते 'अनेन सदृशो गौः' इति, तस्य विषयः सादृश्यविशिष्ट : परोक्षो गौस्तद्विशिष्ट वा सादृश्यम्, तच्च वस्तुभूतमेव । यदाह
"सादृश्यस्य च वस्तुत्वं न शक्यमपबाधितुम् । भूयोवयवसामान्ययोगो जात्यन्तरस्य तत् ॥”
[मी० श्लो० उपमानपरि० श्लो० १८ ] इति
___मीमांसकमत में उपमानप्रमाण माना है। वह भी बौद्ध की प्रमाण संख्याका व्याघात करता है, उपमानप्रमाण का लक्षण इसप्रकार कहा गया है-दिखाई दे रहे गवय आदि पदार्थ से अन्य पदार्थ का जो ज्ञान होता है वह उपमानप्रमाण है । यह सादृश्यरूप उपाधि के कारण होता है । इस प्रकार उपमान को जाननेवालों ने उपमान प्रमाणका लक्षण किया है ।। १ ।। अब इसी उपमानका विवेचन किया जाता है । जिस पुरुष ने गाय को ही देखा है, गवय ( रोझ ) को नहीं देखा है, तथा-"गोसदृशो गवयः" ऐसा अतिदेश वाक्य भी नहीं सुना, (अन्यवस्तु के प्रसिद्ध धर्मका अन्य वस्तु में आरोप करना अति देश कहलाता है ) ऐसे उस पुरुषको वन में घूमते समय जब रोझ दिखाई पड़ता है तो उसे पहिले देखी हुई परोक्ष गाय की स्मृति पाई और स्मृति आनेपर उसे ज्ञान उत्पन्न होता है कि "अनेन सदृशः गौः" इसके समान गाय है सो इस प्रकार के उपमानप्रमाण का विषय गवय के सादृश्य से विशिष्ट परोक्ष गाय है, अथवा गाय से विशिष्ट सादृश्य है । यह सादृश्य वास्तविक है, काल्पनिक नहीं है । कहा भी है-कि सादृश्य की वास्तविकता का निराकरण नहीं कर सकते हैं, बहुत से अवयवों की समानता का योग जो जात्यन्तर रोझ पदार्थ में होता है अर्थात् गाय जाति से अन्य जो रोझ है या रोझ से अन्य जात्यन्तर जो गाय है इनमें बहुत से शारीरिक अवयवों
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