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प्रमेयद्वित्वात् प्रमाण द्वित्वविचारः
४८३ किञ्च, तत्प्रमेय द्वित्वं प्रमाण द्वित्वस्य ज्ञातम्, अज्ञातं वा ज्ञापकं भवेत् ? यद्यज्ञातमेव तत्तस्य ज्ञापकम् ; तर्हि तस्य सर्वत्राविशेषात्सर्वेषामविशेषेण तत्प्रतिपत्तिप्रसङ्गतो विवादो न स्यात् । ज्ञातं चेत्कुतस्तज्ज्ञप्तिः ? प्रत्यक्षात्, अनुमानाद्वा ? न तावत्प्रत्यक्षात् ; तेन सामान्याग्रहणात् । ग्रहणे वा तस्य सविकल्पकत्वप्रसङ्गो विषयसङ्करश्च प्रमाण द्वित्वविरोधी भवतोऽनुषज्येत । नाप्यनुमानतः; अत एव । स्वलक्षणपराङ मुखतया हि भवतानुमानमभ्युपगतम् -
"प्रतद्भदपरावृत्तवस्तुमात्रप्रवेदनात् । सामान्य विषय प्रोक्त लिङ्ग भेदाप्रतिष्ठितेः ।।" [ ]
किञ्च, प्रमेयद्वित्व प्रमाणद्वित्वका ज्ञापक होता है ऐसा आपका आग्रह है सो बताइये कि प्रमेय द्वित्व ज्ञात होकर प्रमाण द्वित्वका ज्ञापक बनता है अथवा विना ज्ञात हुए ही ज्ञापक बनता है ? विना ज्ञात हुए ही प्रमाण द्वित्वका ज्ञापक बनेगा तो ऐसा अज्ञात प्रमेय द्वित्व सर्वत्र समान होनेसे सभी मनुष्योंको समानरूपसे उसकी प्रतीति आयेगी फिर यह विवाद नहीं हो सकता था कि प्रमाण द्वित्व (दो प्रकार का प्रमाण) प्रमेयद्वित्वके कारण है अर्थात् प्रमेय दो प्रकारका होनेसे प्रमाण भी दो प्रकारका हो जाता है । दूसरा पक्ष-प्रमेयद्वित्व ज्ञात होकर प्रमाण द्वित्वका ज्ञापक बनता है ऐसा माने तो यह बताइये कि प्रमेयद्वित्वका ज्ञान किससे हुआ ? प्रत्यक्षसे हुआ अथवा अनुमान से हुआ ? प्रत्यक्षसे हुआ तो कह नहीं सकते, क्योंकि प्रत्यक्ष सामान्य रूप प्रमेयको ग्रहण नहीं करता, यदि करेगा तो वह सविकल्पक कहलायेगा तथा विषय संकर दोष भी आयेगा अर्थात् प्रत्यक्ष प्रमाण यदि सामान्यको ग्रहण करता है तो वह निर्विकल्प नहीं रहता क्योंकि सामान्यको ग्रहण करने वाला ज्ञान सविकल्प होता है ऐसा
आपका आग्रह है, तथा जब प्रत्यक्षने अनुमानके विषयभूत सामान्यको ग्रहण किया तब विषयसंकर हुआ फिर तो दो प्रमाण कहां रहे ? क्योंकि दो प्रकार का प्रमेय होनेसे प्रमाणको दो प्रकारका माना था, जब दोनों प्रमेयोंको [सामान्य और विशेषको] एक प्रत्यक्ष प्रमाणने ग्रहण किया तब अनुमान प्रमाणका कोई विषय रहा नहीं अत: उसका अभाव ही हो जायगा।
दूसरा पक्ष-प्रमाणद्वित्वका प्रमेयद्वित्वपना अनुमानसे जाना जाता है ऐसा कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि इस पक्षमें भी विषय संकर आदि वे ही उपर्युक्त दोष
आते हैं, आपके यहां अनुमानको स्वलक्षणसे पराङ्मुख माना है अर्थात् अनुमान स्वलक्षणभूत विशेषको नहीं जानता ऐसा माना है । अनुमानके विषय में आपके यहां कहा
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