________________
४८२
प्रमेयकमलमार्तण्डे
पन्नप्रतिबन्धमपि सामान्यं तेषां गमकम् ; लिङ्गमप्येवं विधं तद्गमकं किन्न स्यात् ? सामान्यस्यापि सामान्येनैव विशेषेषु प्रतिबन्धप्रतिपत्तावनवस्थासामान्याद्धि सामान्य प्रतिपत्तौ विशेषेष्वप्रवृत्ती पुनस्ततोऽप्यपरसामान्यप्रतिपत्तौ स एव दोषः । अतः सामान्यतदनुमानानामनवस्थानाद्प्रवृत्तिविशेषेषु स्यात् ।
किञ्च व्यापकमेव गम्यम् अव्यभिचारस्य तत्रैव भावात् व्यापकं च कारणं कार्यस्य, स्वभावो भावस्य । तच्च स्वलक्षणमेव, अतस्तदेव गम्यं स्यात् न सामान्यमव्यापकत्वात् । अथ तदपि व्यापकम्, स्वलक्षणवद्वस्तुत्वम्, अन्यथा तस्मिन्नधिगतेपि प्रयोजनाभावात्तत्रानुमानमप्रमारणमेव स्यात् ।
जैन- तो फिर हेतु इसी तरह अज्ञात रहकर भी विशेष का गमक क्यों नहीं होगा ? यदि कहा जाय कि सामान्य भी मात्र सामान्य रूपसे विशेषोंमें अविनाभावका ज्ञान कराता है तो अनवस्था प्रायेगी। इसीको बताते हैं-सामान्यसे मात्र सामान्य ही जाना जाता है अतः उससे विशेषों में प्रवृत्ति तो होगी नहीं, उस प्रवृत्ति के लिये पुनः अनुमान प्रयुक्त होगा किन्तु उससे भी अपर सामान्य मात्र की प्रतिपत्ति होगी न कि विशेष में प्रवृत्ति होगी अतः पूर्वोक्त दोष तदवस्थ रहता है, इसप्रकार सामान्य और तद् ग्राहक अनुमान इनकी अनवस्था होती जानेसे विशेषोंमें प्रवृत्ति होना अशक्य ही है ।
दूसरी बात यह है कि व्यापकको ही गम्य माना जाता है क्योंकि उसीमें अव्यभिचारपना है, और यह व्यापक कार्यका कारण तथा भावका स्वभाव रूप हुआ करता है, इस तरह का जो व्यापक है वह स्वलक्षण ही हो सकता है, अत: स्वलक्षण को ही गम्य मानना होगा सामान्यको नहीं, क्योंकि सामान्य अव्यापकरूप है । यदि कहा जाय कि सामान्य भी व्यापकरूप स्वीकार किया जाता है तब तो स्वलक्षणके समान सामान्य को भी वास्तविक पदार्थ मानना पड़ेगा, अन्यथा उसको जान लेने पर भी कुछ प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा तथा ऐसे अवास्तविक सामान्यको जाननेवाला अनुमान अप्रमाण ही कहलायेगा।
__भावार्थ-बौद्ध सामान्यको अवास्तविक और स्वलक्षणभूत विशेषको वास्तविक मानते हैं, इधर अनुमानको सामान्य का ग्राहक मानते हैं सो ऐसे अवास्तविक पदार्थको विषय करनेवाला ज्ञान अप्रमाणभूत ही ठहरता है, ऐसे अप्रमाणभूत सिद्ध हए अनुमान द्वारा विशेषोंमें प्रवृत्ति होना अशक्य है अत: बौद्धने' जो पहले कहा था कि अनुमान द्वारा सामान्यको ज्ञात कर उस ज्ञात सामान्यसे विशेषोंमें प्रवृत्ति हा करती है, सो सब गलत साबित होता है ।
भावाय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org