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प्रामाण्यवाद:
दोषज्ञानेपि पूर्वेण जाताशङ्कस्य तत्कारणदोषान्तरापेक्षायां कथमनवस्था न स्यात् ? तस्य तत्कारणदोषग्राहकज्ञानाभावमात्रत: प्रमाणत्वान्नानवस्था. यदाह
पाना भी सिद्ध नहीं होता है । भाट्ट ने कहा था कि तीन चार ज्ञानों के प्रवृत्त होने पर प्रामाण्य पा जाता है इनसे अधिक ज्ञानों की जरूरत नहीं पड़ती इत्यादि सो यह कथन केवल अपने घर की ही मान्यता है सर्व मान्य नहीं है । किसी एक विवक्षित जलादि के ज्ञान में प्रामाण्य, फिर अप्रामाण्य पुनः प्रमाणता ऐसे तीन अवस्थाओं के देखने पर बाधक में भी बाधक फिर अबाधक फिर बाधक इस तरह तीन अवस्था की शंका करते हुए परीक्षक पुरुष के लिये और भी आगे आगे के ज्ञानों की अपेक्षा क्यों नहीं आयेगी ? अवश्य ही आवेगी फिर अनवस्था कैसे रुक सकेगी। अर्थात् नहीं रुक सकेगी। भावार्थ-किसीको जलका ज्ञान हुआ उस ज्ञानके प्रमाणता का कारण मीमांसकमतानुसार दोषाभाव है उसको दूसरे ज्ञान ने जाना कि यह जो जल देखा है उसका कारण नेत्र है उसमें कोई काच कामलादि दोष नहीं है इत्यादि, फिर दोष का अभाव प्रकट करने वाले इस ज्ञान के [जो दूसरे नंबर का है] दोष के अभाव को जानने में तीसरा ज्ञान प्रवृत्त हुआ फिर चौथा प्रवृत्त हुआ, सो चार ज्ञान तक यदि प्रवृत्ति हो सकती है तो आगे पांचवें आदि ज्ञानों की प्रवृत्ति क्यों नहीं होगी ? जिससे कि अनवस्था का प्रसंग रुक जाय । ऐसे ही बाधकाभाव जानने के लिये तीन चार ज्ञानों की ही प्रवृत्ति हो अन्य ज्ञानों की नहीं सो बात भी नहीं, वहां भी आगे आगे ज्ञानों की परम्परा चलने के कारण अनवस्था प्रावेगी ही अत: स्वत: प्रामाण्य सिद्ध करने के लिये भाट्ट ने तीन चार ज्ञान की बात कही थी सो वह अनवस्था दोष युक्त हो जाती है । मीमांसक ने अपने ग्रन्थ का उद्धरण देते हुए कहा था कि बाधा नहीं होते हुए भी मोह के कारण जो प्रमाण में बाधा की शंका करता है वह संशयी पुरुष नष्ट हो जाता है इत्यादि सो ऐसा कथन तो केवल डर दिखाने रूप ही है। डर दिखाने मात्र से किसी बुद्धिमान पुरुष की प्रमाण के बिना बाधा की शंका तो दूर हो नहीं सकती, अर्थात् जब तक प्रमाण में प्रामाण्य सिद्ध नहीं होता तब तक तुम्हारे डर दिखाने मात्र से वह शंका नहीं करे ऐसी बात बुद्धिमानों पर तो लागू नहीं होती मूर्ख पर भले ही वह लागू हो जावे । प्रमाण के विषय में आयी हुई बाधा को दूर करने के लिये आपके मतमें कोई प्रमाण नहीं है ऐसा हम जैन सिद्ध कर चुके हैं । दोष का ज्ञान होना इत्यादि विषय में भी कह दिया है कि कारण जो इन्द्रियां हैं उनके दोष काच
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